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________________ ३४० प्रश्रव्याकरणसूत्रे हिष्मादि बन्धनार्थ प्रासादादिष्वारोढुं वा रज्जुदानम् १८, इत्येतान्यष्टादशवि. धानि प्रसूतयः चौर्यकरणानि । पुनः कीदृशास्ते परद्रव्यापहारिणः ? इत्याह-'पाइयंगुवंगा' पतिताङ्गोपाङ्गाः पातितानि-नोटितान्यङ्गानि हस्तपादादीनि, उपाङ्गानि च अङ्गुलिकेशश्मश्वादीनि येषां ते तथा, कलुणा' करुणाः दीनाः-पापमलिना इत्यर्थः 'सुकोटकंठगलतालुजिब्मा' शुष्कोष्टकण्ठगलतालुजिह्वाः ओष्ठौ कण्ठः अक्षरोच्चारणस्थानं गल:-तदधो भागः तालुः प्रसिद्धं एतेषां समाहारः, जलं विना शुष्कमोष्ठकण्ठगलतालु जिहूवं येषां ते तथा, ' तण्हा इत्ता' तृष्णार्दिताः पिपासाऽऽकुलिताःसन्तः 'पाणियं जायंता' पानीयं याचमानः: ' विगयजीवियासा ' विगतजीविताशा -जीवनाशारहिताः ‘वराकाः मन्दपुण्याः वज्झपुरिसेहिं घाडियंता' वध्यपुरुषैपीने के लिये जल देना १७, चुराई गई भैंस आदिको बांधने के लिये तथा मकान आदि की छत पर चढाने के लिये रस्सी देना १८। ये १८ प्रकारकी की चोरियां हैं ॥ ३ ॥ (पाइयंगुवंगा) ये परद्रव्यापहारी चोर हाथ पैर आदि अंगों में तथा अंगुली, केश, श्मश्रु दाढीमूछ आदि उपांगोंमें कभी भी अक्षत नहीं रहते हैं ! (कलुणा) ये सदा पाप से मलिन बने रहते हैं। तथा (सुक्कोट्ट कंठगलतालुजिब्भा) पानी के विना ओष्ठ कंठ गला ताल तथा जिह्वा ये सब इसके शुष्क होते (मूकते ) रहते हैं । ( तण्हाइया) पिपासा से आकु. लित होकर ये (पाणियं जायंता) " पानी लाओ पानी लाओ" इस प्रकार याचना करते हुए (विगयजीवियासा) कभी २ अपने जीवन की आशा से भी रहित हो जाते हैं। (वरागा) इन अभागों को (वज्झદેવાં તે કિયાને પા કહે છે, (૧૬) ભજન બનાવવાને અગ્નિ આપવો, (१७) पावाने भाटे पाए मा५वु सने (१८) थोरवी आय, मेस माहिन બાંધવા માટે અને મકાન આદિના છાપરા પર ચડવાને માટે દેરડું દેવું, એ १८ (मढा२) प्रा२नी योरी डाय छे. ॥3॥ Ail.-" पाइयंगुवंगा" ते ५२धननु २५५३२६ ४२ना२। योर सोना હાથ પગ આદિ અંગે, તથા આંગળીઓ, કેશ, નાક, કાન આદિ ઉપાંગે કદી ५५ अक्षत (छाया विनाना) हातi नथी. “ कलुणा" तेसो पापथी सहा मलिन २९ छ, तथा “सुकोटकंठगलवालुजिव्मा" तेभन॥ , ४, गणु, त तथा न पा विना शु (सूयal) २३ छ. “ तण्हाइया " त२सथी व्याण थने ते सो "पाणियं जायंता" " प सापो, पाणी, पाणी सावो" मेवी यायना ४२॥ ४२॥ “विगय जीवियासा" या तो पानी माशा ५॥ छोडी छ. “वरागा" ते मियारामाने "वज्झपुरिसेहिं" वयस्थान શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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