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________________ ३३४ प्रश्रव्याकरणसूत्रे , 1 भेदग्रहणाय नानाविध मिथ्याभाषिणं, 'परलोक परम्मुहाणं' परलोक पराङ्मुखानां= परलोकभयरहितानामित्यर्थः, 'निरयगहगामियाणं नरकगतिगामिकानामेवंभूतानां राजपुरुषाणां पुरत उपनीताः ' तेहि य' तैश्च राजपुरुषै: ' आणत जीवदंडा ' आज्ञप्त जीवदण्डाः = आज्ञप्तः = आज्ञापितः जीवदण्डः-शूलारोपणादिकः येभ्यस्ते तथा आज्ञप्तमृत्युदण्डा इत्यर्थः, तथा ' तुरियं उग्घाडिया पुरवरेहिं सिंघाडगतियचउक्कच च्चर महापपदे शृंगाटकत्रिकचतुष्कचत्वरमहापथपथेषु = तत्र - शृङ्गाटकः = त्रिकोणमार्गः त्रिकः = यत्र मार्गत्रय सम्मेलनं भवति, चतुष्कः = चतुर्मार्गस्थानं चत्वरः = गाणं) चौरादिकों का भेद लेने के लिये अनेक प्रकार की सैकड़ों झूठी२ बातें बनाने में बड़े चतुर होते हैं, (परलोकपरम्मुहाणं ) परलोकका भय इन्हें बिलकुल नहीं होता है। जो मनमें आता है वही अच्छा मानकर करते रहते हैं । (निरयगइगामियाणं ) इसी कारण मरने पर ये नरकगति में जाते हैं । अब ये राजपुरुष इन्हें क्या २ दंड देते हैं ? सो सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं ( तेहिं य) ये राजपुरुष ( आणत्तजीयदंडा ) इन चोरों को शूलारोपण आदि मृत्युदंड देते हैं । ( पुरवरेहिं ) नगर के (सिंघाडगतियच उक्तचचर महापहपहेसु) श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ एवं पथ इन सब मार्गों में ( तुरियं उग्घाडिया) शीघ्र उन्हें दिखा २ कर यह घोषित करते हैं कि “ देखो भाईयों ! ये महाचोर हैं और आज ही इनको मृत्युदंड दिया जायगा। सिंघाडे जैसा तिकानों जो मार्ग होता है उसका नाम श्रृंगाटक, जहां तीन मार्गो का संमेलन है उसका नाम त्रिक, जिस रास्ते में चार रास्ता आकर मिलते हैं उस का ચાર આદિના ભેદ જાણવાને માટે અનેક પ્રકારની સેંકડા જુઠી વાતા બનાવી કાઢવામાં તે નિપુણ હોય છે, परलोक परम्हाणं ” તેમને પરલેાકના ડર मिसडुस होतो नथी, तेभने मनमां आवे ते सारु' मानीने १रे छे. " निर. यगइगामियाणं " તે કારણે મરીને તેઓ નરકગતિમાં જાય છે. હવે તે રાજ पुरुषो तेभने ठेवी ठेवी सन्न उरे छे, ते सूत्रार मतावे छे - " ते हिंय તે રાજપુરુષા " आणत्तजीयदंडा ” ते यशिने शुद्धाशयाशु याहि मृत्युद्द उ हे छे. पुरवरेहिं નગરના सिंघाडगतियचउक्कचच्चरमहापहपहेसु " शृंगार, यतुष्छ, यत्वर, મહાપથ અને પથ એ બધા માર્ગો પર तुरिय उघाडिया ” तेभने जडयुधी मतावीने भेवु लडेर ४२ छे “ लाभो ! नुवा આ મહાન ચાર છે, અને આજે જ તેને મૃત્યુઇડ આપવાને છે” શિ’ગાડા જેવા ત્રિકાાકાર માગને શૃંગાટક કહે છે, જ્યાં ત્રણ રસ્તા મળે તે ત્રિક, જ્યાં ચાર રસ્તા મળે તે ચતુષ્ક, જ્યાં અનેક માર્ગો મળે તેને ચત્વર કહે << 66 (6 શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર " 66 "
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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