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________________ सुदर्शिनी टीका अ०३ सू०१५ कीदृशाश्चौराः कीदृशं फलं लभन्ते ? ३३१ टीका-' अदंतिदिया' अदान्तेन्द्रियाः-अवशेन्द्रियाः ' वसट्टा' वशार्ता शब्दादिविषया सक्तिपीडिताः 'बहुमोहमोहिया' बहुमोहमोहिता प्रचुरऽज्ञानमू. र्छिताः 'परधणम्मि लुद्धा' परधने लुब्धाः परद्रव्यतृष्णावन्त इत्यर्थः, 'फासिदियविसयतिव्वगिद्धा' स्पर्शेन्द्रियविषयतीव्रगृद्धाः स्पर्शेन्द्रियविषये स्त्र्यादौ गाढासक्ताः 'इत्थिगयख्वसद्दरसगंधइट्ठरतिमहियभोगतण्हाइया य ' स्त्रीगतरूपशब्दरसगन्धेष्टरतिमहितभोगतृष्णार्दिताश्च-तत्र स्त्रीगताः स्त्रीसम्बन्धिनो ये रूपशब्दरसगन्धास्तेषु इष्टा=अभीप्सिता या रतिः रमणं तथा स्त्री गत एव महितः = वाञ्छितो यो भोगः= विलासः तयो र्या तृष्णा तया अर्दिताः पीडिताः 'धणतोसगा' धनतोहैं ? यह कहते हैं-' अदंतिदिया' इत्यादि । टीकार्थ-(अदतिंदिया) ये अदत्तग्राही चोर ( अदंतिदिया ) ऐसे होते हैं कि इनकी इन्द्रियां इनके वशमें नहीं रहती है, (वसहा) शब्दादिक विषयों में ये अधिकरूप में आसक्तिवाले होते हैं, (वहुमोहमोहिया) अज्ञानको सत्ता इनमें अधिकसे अधिक रहती है (परधणम्मिलुद्धा) परके द्रव्यमें इन्हें बहुत भारी तृष्णा रहती है। (फासिंदियविसयतिव्वगिद्धा ) स्पर्शन इन्द्रियके विषयभूत स्त्री आदि पदार्थ में इनकी गाढ आसक्ति होती है। (इत्थिगयरूवसहरसगंधइट्ठरइमहियभोगतहाइया य) (इत्थिगय) स्त्री संबंधी ( रूवसदरसगंधइट्टरइ ) रूप शब्द, रस, गंधमें इच्छानुसार रमण करनेकी तथा (महिय) स्त्रीके भोगनेकी वाञ्छा इनमें अधिक रहती है । परन्तु ( भोगतण्हाइय। ) उन भोगोंकी पूर्ति नहीं हो सकने के कारण ये उनकी तृष्णासे रातदिन ते सूत्रस२ मा छ- 'अदतिंदिया ” त्याहि टी -" अदंतिदिया” ते महत्ताबाडी यो२ मेवा डाय छे तेमनी धन्द्रिये! ५२ तेमनी भू खात नथी, “ वसट्टा ” शाहि विषयोमा ते पधारे प्रभाएमा मास हाय छ, “ बहुमोहमोहिया " तेभना ५२ Alननी सत्ता पधारेभा पधारे यास छ, 'परधणम्मि लुद्धा" ५२धननी तृl तमनामा ५४ धारे डाय छ, “फासिंदियविसयतिब्यगिद्धा” २५शे. ન્દ્રિયને વિષયભૂત સ્ત્રી આદિ પદાર્થોમાં તેમની તીવ્ર આસકિત હોય છે, " इत्थिगयरूवसदरसगंधइट्टरइमहियभोगतण्हाइया य " " इत्थिगय" स्त्री समाधी “ रूवसहरसगंध इट्टरइ" ३५, १४, भने मधमा २छानुसार २माण “ महिय '४२वानी तथा स्त्री। साथे २तिरभ ४२वानी वासना तमनामा पधारे डाय छे. ५५ " भोगतहाइया" ते मागे ५२॥ नही थवाने ४२, तमनी શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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