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________________ सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू०१४ चौराः किं फलं प्राप्नुवन्तीतिनिरूपणम् ३२९ तथा ' लंवंतचम्म वणवेयणविमुहियमणा' लम्बमानवर्मव्रण वेदनाविमुखितमनसःलम्बमानचर्माणि=गलच्चर्माणि यानि व्रणानि =क्षतानि 'घाव ' इति प्रसिद्धानि तेषां या वेदनाः = पीडाः ताभिः विमुखितं = वौर्य करणाद विरक्तं मनो येषां ते तथा, 'घणकोट्टणनियलजुयल कोडियमोडियाय ' धनकुट्टन निगडयुगल कोटितमोटिताश्च = तत्र धनकुट्टनेन - लोहमयमुद्गरताडनेन निगडयुगलेन = शृङ्खलाद्वयबन्धनेनेत्यर्थः, संकोटिताः सङ्कोचिता मोटिताः = वक्रीकृताश्च ये ते तथा 'कीरंति ' 'क्रियन्ते = राजपुरुषैरिति पूर्वेण सम्बन्धः । तथा निरुच्चाराः = निरुद्ध मूत्रपुरीषोत्सर्गाः, यद्वा - निरुच्चाराः = स्वपीडाप्रतीकारार्ध मेकशब्दोच्चारणमात्रमपिकर्तुमशक्ताः, अत एव असञ्चरणाः = गमनागमनवर्जिताः एकस्थानप्रतिबद्धा एव 'पावा' पापाः=पापपन्न बने हुए तथा (लंबतच मवणवेयणविमुहियमणा ) ( लंबंतचम्म ) कोड़ो आदि की मार से शरीर की खाल खिंच जाने के कारण लटकते हुए चमड़े से युक्त (वण) घावों की ( वेधण ) वेदना से ( विमुहियमणा ) जिनका मन चौरी करने से विरक्त हो चुका है ऐसे, तथा (घणकोट्टणनियलजुयल संकोडियमोडिया य ) ( घणकोण लोहमय मुहरों की चोट से एवं (नियलजुय) दो सांकलों द्वारा किये गये बंधनों h (कोडियमोडिया ) जिनका शरीर संकुचित होकर वक्रीभूत हो चुका है तथा (निरुच्चारा ) अपनी पीड़ा को प्रकट करने के लिये जो एक शब्द के उच्चारण करने में भी असमर्थ बन चुके हैं, अथवा - वेहद मार के कारण मल मूत्रका उत्सर्ग जिनका बंद हो चुका है और इसी कारण जो (असंचरणा) एक ही स्थान में प्रतिबद्ध रहने के कारण जो चलने फिरने में असमर्थ बन चुके हैं ऐसे ये अदत्तग्राही ( पावा ) पापी " એવી ઢીનદશાઓમાં મૂકાયેલા તથા लंबतच मवणवेयणविमुहियमाणा " " लंबतचम्म ” ओरडा महिना अहारथी शरीरनी याभडी उतरी भवाथी લટકતી ચામડી વાળા 66 वण " धावोनी वेहनाथी " विमुहियमणा " જેમનાં भन थोरी श्वाथी विरस्त थ गयां छे, तथा " घणकोट्टण नियलजुयल संकोडिय मोडिया “ कोण " सोहभय भगहणोनी थोटथी भने “ नियलजोयल " ये सांडो द्वारा धायेसां अघनाथी " संकोडियमोडिया " જેમનાં શરીર सयाने वजी गयां छे. तथा " निरुच्चारा " पोतानी बेहनाने प्रगट उरवाने માટે એક શબ્દ પણ ખેલવાને જે અસમ છે, અથવા બેહુદ મારને લીધે नेभनी भणसूत्र आहिना उत्सर्जनी डिया अंध थह गई छे भने “ असंच” એક જ સ્થાનમાં પૂરાયેલ રહેવાને કારણે જેવા હલન ચલન કરવાને रणा શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર "
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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