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________________ २९० प्रश्नव्याकरणसूत्रे समरे भटा यत्र स तथा तत्र " आडवियछेयलाघवपहारसाहिए" आपतितछेक लाघवप्रहारसाधिते तत्र आपतिताः योद्धुमुद्यता ये छेकाः निपुणाः भटाः, तेषां तत्कर्तृका इत्यर्थः, ये लाघवपहारा: चातुर्य पूर्णप्रहारास्तैः साधितो-निर्मितः यः स तथा तस्मिन् । तथा ' समूसियबाहुजुयले ' समुच्छितबाहुयुगले समुच्छ्रितानि =हर्षाधिक्यादूर्वीकृतानि बाहुयुगलानि भटैर्यत्र स तथा तत्र, तथा 'मुकट्टहासपुकंतबोलबहुले ' मुक्ताहासपूत्कुर्वखोलबहुले = मुक्ताटहास:-कृतमहाहासध्वनयः, पूरकुर्वन्तः नामनिर्देशपूर्वकं परमाह्वयन्तो ये सुभटास्तेषां बोलाः कोलाहला, स बहुलो यस्मिन् स तथा तस्मिन् । 'फुरफलग्गावरणगहियगयवरपत्थंतदरियभडखलपरोप्परपलग्गजुद्धगव्वियविकोसियवरासिरोसतुरियअभिमुहपहरंतछिण्णकरिकरविअंगियकरे ' स्फुरफलकावरणगृहीतगजवरमार्थयमानदृप्तभटखल-परस्परप्रलग्न युद्धगर्वितविकोशितवरासि-रोषत्वरिताभिमुखमहर-च्छिन्न-करिकर-व्यङ्गित-करे तत्र 'फुरफलगावरणगहिय ' स्फुरफलकावरणाः स्फुराः अस्त्रप्रतिघातनिवारकच. ममयपट्टविशेषाः, फलकानि' ढाल ' इति भाषा प्रसिद्धानि आवरणानि च कवचानि, तानि गृहीतानि धृतानि यैस्ते तथा स्फुरकादि शस्त्रधारिणः, तथा ( आडवियछेयलाघवपहारसाहिए ) जो युद्ध करने के लिये उद्यत हुए ऐसे निपुण भटों के चातुर्य पूर्ण प्रहारों से निर्मित किया गया है, (समूसियवाहुजुयले ) तथा जिसमें हर्षित बने हुए भट हर्ष की अधिकता से अपने २ बाहुयुगलों को ऊपर उठा रहे हैं (मुकट्टहासपुकंत बोलबहुले) तथा जिसमें सुभटजनों की महाहास्यध्वनि द्वारा एवं दूसरों को नाम निर्देशपूर्वक बुलाने के शब्दों द्वारा बहुत कोलाहल मचा रहता है तथा जिसमें योद्धागण (फुरफलगायरणगहिय) अस्त्रप्रतिघातको निवारण करनेवाले चर्ममय पट्टविशेषोंको, फलकोंको ढालोंको लिये रहते हैं, तथा कवच आदि आवरणोंसे सज्जित रहाकरते हैं, तथा (गयवरपत्थंत) जिसमें " आडवियछेयलाघवपहारसाहिए "२ युद्ध ४२वाने तैयार थयेमे। निपुण सुलटोना यातु पूर्ण प्रहा।थी युक्त छे “ समूसियबाहुजुयले ” तथा જેમાં આનંદિત બનેલા સુભટે આનંદની અધિકતાથી પિત પિતાની ભુજાઓ यी ४२री २७ . "मुक्कट्टहासपुक्कतबोलबहुले” तथा मा सुखटाना મુક્ત હાસ્યને ધ્વનિ તથા બીજાને નામ દઈને બેલાવવાને શબ્દો દ્વારા ભારે साहस भयी रह्यो छ, तथा २मा योद्धासान! समूह " फुरफलगावरणगहिय " शस्त्रोना धाने २४वाने भाटे यमभय पट्ट विशेषोने, सीने-ढासाने था२१ ७३ छे. तथा यमतर माहि सावरणथी स०४ २३ छे. तथा “गयव. શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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