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________________ २८८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे , सञ्चालने, उद्यताः = प्रवृत्ताः कराः = हस्ताः सैनिकानां यत्र स तथा तत्र, अति क्रोधशोणीकृताननाः भयङ्करस्वरूपा योधाः सततमव्यग्रा अश्रान्ता अविच्छेदेन शस्त्रप्रहरणसमावृता यस्मिन् संग्रामे सन्तीत्यर्थः । ' अमरिसवसतिव्वरत्तनिवारिबच्छे' अमर्षवशतीव्ररक्तनिदरिता क्षे=अमर्षवशेन = क्रोधवशेन तीव्ररक्ते = अत्यन्त लोहिते, निर्दारिते= स्फारिते चाक्षिणी योधानां यस्मिन्, तत्र । तथा ' वेरदिहिकुद्धचेट्ठियतिवली कुडिलभिउडिकललाडे ' वैरदृष्टिक्रुद्धचेष्टितत्रिवलीकुटिलभ्रुकुटीकृतललाटे=तत्र वैरदृष्ट्या = वैरभावनया ये क्रुद्धा =कुपिता भटास्तैथेष्टिता त्रिवली= ललाटसङ्कोचजनितत्रिरेखारूपा तथा कुटिला भ्रकुटी कृता ललाटे=भाले यत्र स तथा तत्र ' वधपरिणयन र सहस्सविकमवियंभियबले' वधपरिणत नरसहस्र विक्रमविजृम्भितबले = बधे = प्रतिपक्षिहनने परिणतानां तत्पराणां नरसहस्राणाम् = अनेकसहस्रसुभटानां पराक्रमेण विजृम्भितं = विक्षोभितं बलं शत्रुसैन्यं शत्रुसामर्थ्य वा यत्र स तथा तस्मिन् एतादृशे संग्रामे अतिपतन्तीत्यनेनाऽन्वयः ॥ सू० ६ ॥ हारकर णुज्जयकरे ) द्विपक्षी सुभटों के ऊपर प्रहार करने के लिये जहां सुभटों के हाथों का संचालन हो रहा है तथा ( अमरिसवसतिव्वरतनिदारितच्छे ) जहाँ पर ( अच्छे ) वीरों के दोनों नेत्र ( अमरिसवस) क्रोध के वशसे (निधारित) अपलक - निर्निमेष होकर (तिव्वरत्ता) अत्यंत रक्तवर्ण के बन रहे हैं, तथा (वेरदिट्टि) वैरकी भावनासे (कुद्ध) कुपित हुए भों द्वारा (चेडिय) चेष्टित की गई ( तिवली ) अपनी २ त्रिवली - तीन रेखाएँ, तथा (कुडिलभिउडिकय ) कुटिल- टेढी भ्रकुटी ललाट ऊपर जहां की गई है, तथा ( वहपरिणयनसहस्सविक्कम वियंभियबले ) प्रतिपक्षीभूत सुभटों को मारने में तत्पर बने हुए अनेक सहस्र सुभटों के प्रराक्रम से जहां पर शत्रु का सैन्य-अथवा बल-सामर्थ्य विक्षोभित छे, तथा सप्पहार करणुज्जयकरे " हुश्भहजना सैनिओ उपर अहार उखाने भाटे ल्यां सुलटोना हाथी यासी रह्या छे, तथा " अमरिसवसतिव्वरत्तनिद्दारितच्छे” नयां “अच्छे' वीरोनी मन्ने यांगो "अमरिसवस" धावेशथी 'निहारित” अस -पसारा रहित थहने “तिव्वरत्ता" अत्यंत बाद मनी रहेस छे, तथा “वेरदिट्टि” वैरवृत्तिथी “ कुद्ध” अपायमान थयेस सुलटो द्वारा " चोट्ठिय " राती “तिवली” पोत पोतानी | रेमाओ "त्रिवली " ( अपायमान थतां पाणमां पडती १२यसीओ। ) तथा “ कुडिलभिउडिकय" नयां लभरो हुटी उद्याने थडी गा वहपरिणयन सहस्सविकमवियंभियबले छे, तथा દુશ્મનાના મારવાને આતુર બનેલા અનેક હાર સુભટોનાં પરાક્રમથી જ્યાં દુશ્મનના સૈન્યને શક્તિ 16 શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર 66 ""
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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