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________________ २६८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे परके धनका अपहरण होता है इसलिये इसका नाम अपहरण है१० । परद्रव्य चुराने में हाथकी कुशलता काम देती है, अथवा परद्रव्यके चुरानेसे हाथमें लघुता-नीचता आती है इसलिये इसका नाम हस्तलघुत्व है ११। यह कृत्य पापानुष्ठान स्वरूप है, इसलिये इसका नाम पापकर्मकरण है १२ । यह चोरों का कर्म है इसलिये इसका नाम स्तन्य है। १३ । परद्रव्यके हरण से हरने वाले का नाश ही हो जाता है । इसलिये इसका नाम हरण विप्रणाश है १४ । दूसरों की अनुमति विना ही धनादिक का इसमें ग्रहण होता है इसलिये इसका नाम आदान है १५ । दूसरों के द्रव्य का हरण करना ही द्रव्य का विनाश करना है, इसलिए इसका नाम परद्रव्यविच्छेद है १६ । कोई भी पुरुष चोरों का विश्वास नहीं करता है, अतः अविश्वास का उत्पादक होने से इसका नाम अप्रत्यय है १७ । द्रव्य का हरण हो जाने से दूसरों को पीड़ा होती है इसलिये पर को पीड़ा का कारण होने से इसका नाम अवपीड है १८ । परद्रव्य का इस क्रिया से विच्छेद होता है, अर्थात्-चोरे गये द्रव्य को चोर यद्वा तदा खर्च कर डालते है, यही परके द्रव्य का विच्छेद है इसलिये इसका नाम परद्रव्यविच्छेद है १९। स्वामी के हाथ से यह चुराया हुआ द्रव्य निकल जाता है-चोरों के हाथों में आ जाता है, इसलिये इसका “ तस्कर ता" छ. (१०) तेमा धननु अ५७२६४ थाय छ, तथा तेनु नाम अपहरण छ (११) ५२धन यो२वामा डायनी शाता म. मावे छ, अथवा પરધનની ચોરીથી હાથમાં લઘુતા–નીચતા પ્રવેશે છે. તેથી તેનું નામ સૂતરુંધુત્વ छ. (१२) ते कृत्य पापकृत्य पाथी तेनु नाम पापकर्मकरण छ. (१३) ५२. धननु २५५७२९ ४२वाथी २नारने नाश थाय छ, तेथी तेनु नाम. हरणवि. प्रणाश छे (१५) wlonनी अनुमति लिन ४ तेभा धन A अड ४२१य છે, તેથી તેનું નામ ગાન છે. (૧૬) બીજાના દ્રવ્યનું હરણ કરવું એ જ દ્રવ્યને વિનાશ ગણાય છે, તેથી તેનું નામ વિછેર છે. (૧૭) કોઈપણ માણસ ચેરેને વિશ્વાસ કરતા નથી એ રીતે અવિશ્વાસ જનક હોવાથી તેનું नाम "अप्रत्यय" छ. (१८) द्रव्यनु २५५९२६४ थवाथी अन्यने पी. थाय छे, तेथी पीडान १२ हवाथी तेनु नाम “अवपीड” छे. (१८) ५२चनना ! કિયાથી નાશ થાય છે, એટલે કે ચાર લોકે ગમે તે પ્રકારે તેને વેડફી નાખે छ. म प्रमाणे ते द्रव्यन विश्छे ४२रावना२ डावाथी तेनु नाम “परद्रव्य. विच्छेद ” छे(२०) ते थाराये द्रव्य तेना मालिना रायमाथी यायु ४४ने શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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