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________________ प्रज्वल्यमाना , सुदर्शिनीटीका अ० २ सू०१५ मृषावादिनां नरकादिप्राप्तिरूपफल निरूपणम् २४९ असत्केन - असदूषेण अथवा अशान्तकेन = अनुपशान्तेन ' उज्झमाणा' दह्यमानाः= 'अवमाणणा पिट्ठिमसाहिक्खेव पिसुणभेयण गुरुबंधवस्यण मित्तावक्खारणा दियाई ' अपमाननपुष्टिमांसाधिक्षेपपिशुन भेदनगुरुबान्धव स्वजनमित्रापक्षारणादिकानि = तत्र अपमाननम् = मानभङ्गः, पृष्ठिमासं = परोक्षे दोषभाषणं, अधिक्षेप := धिकारपूर्वक निन्दनं, पिशुनभेदनं = पिशुनैः = खलैः भेदनं प्रेमसम्बन्धविच्छेदनं, गुरुबान्धवस्वजनमित्राणामपक्षारणं रूक्षवचनैस्तर्जनं, अथवा मित्रादिभिर्वहिष्करणं च एतानि आदि येषां तानि तथा भूतानि, ' अब्भक्खाणाइ ' अभ्याख्यानानि = असत्यदोषारोपणवचनानि 'बहुविहाइ बहुविधानि नानाप्रकाराणि 'अमणोरमाइ' अमनोरमाणि= मनःप्रतिकूलानि ' हिययमणदूमगाई' हृदयमनोदावकानि य अलिएण असंतणं ) मृषावादीजन इस असद्रूप अथवा अनुपशान्त मृषावाद से ( उज्झमाणा ) रातदिन जलते रहते हैं और ( अवमाणणपिहिमं साहिखेव पिसुण भेयणगुरुबंधवसयणमित्ताऽवक्खारणादियाई ) ( अवमाणण ) अपमान सहन करते हैं । ( पिट्ठिमंस ) हरएक कोई इनकी पीठ पीछे निंदा करते हैं । ( अहिक्खेव ) प्रत्येक व्यक्ति इन्हें धिक्कारता रहता है । (पिसुण भेवण ) दुष्ट लोग इनके प्रेमसंबंध को विच्छेद करा देते हैं (गुरुबंधवसयणमित्ता) गुरुजन, बंधुजन, स्वजन एवं मित्र (अवक्खारणाइयाइं ) रूक्ष वचनां द्वारा इनका अनादर करते हैंडाटते डपते रहते हैं, अथवा ये सब इन्हें अपने में से बाहर निकाल देते हैं (अभक्खाणा ) चाहे जो मनुष्य इन पर असत्य दोषारोपण कर दिया करता है । इस प्रकार ये लोग असत्यदोषारोपण वचनों को कि जो ( बहुबिहाई ) नाना प्रकार के होते हैं, ( अमणोरमाई) मन को विभुज रहे है, तथा " तेण य अलिएण असंतपुणं " भृषावाहीन मी असच અથવા અનુપશાન્ત મૃષાવાદથી ૬: उज्झमाणा ”” રાતદિન જલતા રહે છે અને अवमाणपट्टि साहिखे व पिसुणभेयण गुरुबंधव सयण मित्ताऽवक्खारणादियाई ” 66 66 अपमान सहन उरे छे, "पिठुमंस अवमाणण દરેક વ્યક્તિ તેની पीठ पाछण निंदा उरे छे, " अहिक्खेब ” हरे5 व्यक्ति तेने धिरे छे, " पिसुण भेयण " दुष्ट सोडी तेमना प्रेम संबंधमां लगाए। पडावे छे, “गुरुबंधवसयण मित्त " गुरुन्न, अधुन्न, स्वन्न भने मित्र अवक्खारणाइयाई " और वयो द्वारा तेभनो मनाहर उरे छे-घाउ घभट्टी भापता रहे छे અથવા તે ખધા તેમને પેાતાની વચ્ચેથી બહાર કાઢી મૂકે છે. “ अभक्खाणाई તેમના ઉપર લેકે ગમે તે પ્રકારનું દોષારોપણ કર્યાં કરે છે. આ રીતે તે લાક અસત્ય દોષારાપણ કારક વચને, કે જે बहुविहाई " विविधप्रानां होय छे, " अमणोरमाई ” भनने न गमे तेवां होय छे, तथा हिययमणदुमगाईं " ," 16 ८८ "" ," શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર ""
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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