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________________ ૨૨૨ प्रश्नव्याकरणसूत्रे मलिणाइं भूयघाओवघाइयाइं सच्चाणि वि ताइं हिंसगाई वयणाई उयाहरंति पुटा वा अपुट्टा वा ॥ सू० १२ ॥ टीका-'जंताई' यन्त्राणि तिलनिष्पीडनादि यन्त्राणि उदाहरन्तीति वक्ष्यमाणेन सम्बन्धः । “ विसाई ' विषाणि क्षणमात्रप्राणहारकतालपुटसादीनि स्थावरजङ्गमभेदानि । मूलकम्मआहेवणआविंधणआभिओगमंतोसहिप्पओगे' मूलकर्माक्षेपणावर्धनाभियोग्यमन्त्रौषधिप्रयोगान्-मूलकर्म-गर्भघातनादिकम् , अथवा मूलनक्षत्रादि जातस्य तदोषशान्त्यर्थं स्नानकर्मादिकम् , आक्षेपणं-नगरादि क्षोभोत्पादनम् , आवर्धनं=धनादीनां मन्त्रप्रयोगेण हरणं आभियोग्यं च-वशीकरणादि तच्च द्रव्यतो द्रव्यसंयोगजनितं भावतो विद्यामन्त्रादिसंजातं वलात्कारजनितं बा, तथा मन्त्रीपधिप्रयोगान् मन्त्रप्रयोगान् औषधिमयोगांश्च, तथा 'चोरियपरदार गमणबहुपावकम्मकरणं' चौर्यपरदारगमनवहुपापकर्मकरणं = चौर्यपरस्त्रीगमनादि फिर भी कहते हैं-'जंताई विसाई' इत्यादि। टीकार्थ-(जंताई ) यंत्रों को-तिल आदि के निष्पीडक कोल्हू आदि पदार्थों को ( विसाइं) क्षणमात्र में प्राणों को नष्ट करने वाले तालपुट, सर्प आदि स्थावर जंगम विषोंको (मूलकम्म-आहेवण-आविधणआभिओग-मंतोसहि-प्पओगे) गर्भघातन आदि रूप मूलकर्म को, अथवा मूल नक्षत्र में उत्पन्न हुए बालक के दोषशांति के लिये स्नान कर्म आदि को, नगरादिक में क्षोभोत्पादनरूप आक्षेपण को, मंत्र के प्रयोग से धनादिकों के हरणरूप आवर्धन को, वशीकरणादिरूप आभियोग्य कर्म को, तथा मंत्र प्रयोगों को, औषधि के प्रयोगों को तथा (चोरियपरदार गमणबहुपावकम्मकरणं ) चोरी, परदारगमन आदि रूप पापकर्मों के ७७ ५५५ सूत्रा२ ४ छ-"जताई विसाई" त्या टी -“ जंताई" तेस माहि पासवानi lel माह पहानि “विसाई" એક ક્ષણમાં જ પ્રાણ હરી લેનાર તાલપુટ, સર્પ આદિ સ્થાવરજંગમ વિષોને, " मूलकम्म-आहेवण आविंधण-आमिओग-संतोसहि-प्पओगे" मधातन माहि રૂપ મૂલકર્મને, અથવા મૂળ નક્ષત્રમાં જન્મેલા બાળકની દષત્તિ માટે સ્નાનકર્મ આદિને, નગરાદિમાં ક્ષોભ ઉત્પન્ન કરવારૂપ આક્ષેપણને, મંત્રપ્રયોગ વડે ધનાદિનાં હરણરૂપ આવર્ધનને, વશીકરણાદિરૂપ આભિયોગ્યકર્મને, તથા મંત્ર प्रयोगान, मौषधि प्रयोगाने तथा “ चोरियपरदारगमणबहुपावकम्मकरणं" यारी, ५२६॥२॥मन, माहि पापी ४२पाने, तथा · अवक्खंदे " सैन्य शिबिर શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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