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________________ २०८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे 4 घाती ' पावकम्मकारी ' पापकर्मकारी दुष्कर्माचरणशीलः ' अकम्मकारी' अकर्मकारी = अनुचितकर्मकारी ' अगम्मगामी ' अगम्मगामी - भगिन्यादिगमनकारी, चास्ति । अयं 'दुरप्पा' दुरात्मा=दुष्टात्मा बहुए य' बहुकैः च = अनेकैः 'पातगेसु' पातकेषु = पापकर्मसु 'जुत्तो ' युक्तः = संलग्न इति । एवं ' भइगे ' भद्रके = निर्दोषे 'मच्छरी ' मत्सरिणः परगुणद्वेषिणः ' जंपंति ' जल्पन्ति = ब्रुवन्ति । कीदृशास्ते मृषावादिनः ? इत्याह-' गुण कित्तिनेहपरलोगनिष्पिवासा' गुणकीर्तिस्नेहपरलोकनिष्पिपासाः = गुणाः = विनयार्जवादयः, कीर्तिः = यशः स्नेहः = भूतेषु प्रीतिः परलोक = जन्मान्तरं तेषु निष्पिपासा = निराकादक्षाः एवमुक्तप्रकारेण एते 'अलियवयणदक्खा ' अलीकवचनदक्षाः = मृषाभाषणनिपुणाः, ' परदोसुष्पायण संसत्ता परदोषोत्पादनसंसक्ताः = परदोषाविष्करणतत्पराः , * यह (विस्संभघायओ) विश्वासघाती है ( पावकम्मकारी ) पापकर्मकारी है, ( अकमकारी ) अनुचित कामों को करता रहता है, तथा (अगम्मगामी) अगम्यगामी है-भगिनी आदिका सेवन करने वाला है। (अयंदुरप्पा ) यह दुरात्मा ( बहुए य पातगेसु जुत्तो ) अनेक पापकर्मों में लगा रहता है । (भद्दगे ) निर्दोष पुरुष में ( मच्छरी ) दूसरों के गुणों से द्वेष करने वाले, तथा ( गुणकित्तिनेहपर लोगनिष्पिवासा) विनय आर्जव आदि गुणों में, कीर्ति में तथा स्नेह - जीवों के ऊपर प्रीति रखने में और परलोक में आकांक्षा विहीन पुरुष ( एवं पंजंति ) इस प्रकार बोलते हैं । इन्हें अपने परलोकके सुधार की भी कोई चिंता नहीं होती है | ( एवं एए) इस प्रकार ये ( अलियवयणदक्खा ) असत्य बोलने में बड़े चतुर, तथा ( परदोसुपायण संसत्ता) दूसरों के दोषों को प्रकट वि विसंभघायओ " ते विश्वासघाती छे, “ पावकम्मकारी પાપકૃત્ય કરે नारे। छे, " अगम्मगाभी " अगभ्यगाभी " अयं दुरप्पा "" 66 सीन रहे छे " 6 छे, " अकम्मकारी " अनुचित त्यो છે-ભગિની આદિનું સેવન કરનાર છે, य पातगेसु जुत्तो" अने पायाभेोभां ષાના 29 मच्छरी તથા અન્યના ગુણાને દ્વેષ કરનાર, परलोग निष्पिवासा " विनय मानव आदि गुणोथी रहित, डीर्ति तथा स्नेहथी રહિત, અને પરલેાકની આકાંક્ષા રહિત “ एवं जंपति ” ७५२ प्रमाणे मोटो छे. तेने पोतानो परसोङ सुधारवानी पशु चिन्ता होती नथी. “ एवं एए રીતે તે " अलियवयणदक्खा " અસત્ય ખેલવામાં ઘણેા નિપુણ, તથા दो सुपायणसंसत्ता અન્યના ઢાષાને જાહેર કરવામાં જ લીન એવા તે મૃષા " આ 66 पर શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર "" "" 1 આ દુરાત્મા बहुए सु " भद्दगे " निर्दोषपुरुતથા गुणत्ति ह 66
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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