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________________ १८० प्रश्रव्याकरणसूत्रे हे वायजोगजुत्तं, पंच य खंधे भणंति केइ, मणं मण जीविका वदंति, वाऊजीवो त्ति एवमाहंसु सरीरं साइयं सनिधणं इह भवे एगभवे, तस्स विप्पणासंमि सव्वनासो त्ति एव जंपति मुसावाई ॥ सू० ४ ॥ टीका- 'अवरे' अपरे=उक्तेभ्योऽन्ये ' नत्थिगवाइणो' नास्तिकवादिनः 'नास्ति परलोकः' इति मतिर्येषां ते नास्तिका स्ते च ते वादिनः प्रत्यक्षप्रमाणवादिनचार्वाकाः, तथा ‘वामलोगवाई ' तथा वामलोकवादिनः, वाम विरुद्ध लोकं वदन्ति ये ते तथा सतामपि लोकवस्तूनामसत्व प्रतिपादकाः शून्य वादिनः इत्यर्थः, ते हि 'भणन्ति वदन्ति यत् 'नत्थि जीवो' नास्ति जीवः सुखदुःखादि भोक्ता तत्साधक प्रमाणाभावात् , यतो हि न तत्र प्रत्यक्षं प्रमाणमुपक्रमते चक्षुरादीन्द्रियविषयत्वात्, नाप्यनुमानं तत्र प्रमाणम् , तस्य व्याप्तिपक्षधर्मताज्ञानाद्यधीनतया तथा-'अवरे नत्थिगवाइणो' इत्यादि. टीकार्थ-(अवरे ) इन पूर्वोक्त व्यक्तियों से भिन्न (नत्थिगवाइणो) जो नास्तिकवादी हैं-' परलोक नहीं है ' इस प्रकार की जिनकी बुद्धि है ऐसे केवल एक प्रत्यक्ष प्रमाण मानने वाले चार्वाक, तथा (वामलोगवाई) वामलोकवादी-शून्यवादी, ये लोक में रही हुई वस्तुओं को असत्रूप से प्रदिपादित करते हैं वे ( भणंति ) कहते हैं कि (नत्थिजीव ) सुख, दुःख आदि अवस्थाओं का भोक्ता जीव नाम का कोई पदार्थ नहीं है, कारण कि इसके साधक प्रमाणों का अभाव है प्रत्यक्षप्रमाण इसका साधक इसलिये नहीं होता हैं कि चक्षुरादिक जो इन्द्रियां है वे उसे अपना विषयभूत नहीं बनाती हैं । अनुमान से भी उसका ग्रहण नहीं होता है, क्यों कि अनुमान से साध्य और साधन की व्याप्ति का एवं पक्ष. तथा-“ अवरे नत्थिगवाइणो" त्यात टी-“अवरे" पूति व्यस्तियोथी १०४ ५४१२न! 'नथिगवाइणो" જે નાસ્તિકવાદી છે-“પરલેક નથી” એ પ્રકારની જેમની માન્યતા છે એવાં, ३४त प्रत्यक्ष प्रभाशुने ४ मानना२ यावाही, तथा “वामलोगवाई" વામલેકવાદી–વામમાર્ગ, તેઓ સૃષ્ટિમાં રહેલ વસ્તુઓને અસત રૂપે પ્રતિપાहित ४२ छ तेस “भणंति" हे छ " नत्थि जीवो" सुभ हुम माहि અવસ્થાઓને ભેંકતા જીવ નામને કઈ પદાર્થ નથી, કારણ કે તે સિદ્ધ કરવા માટેના પ્રમાણેને અભાવ છે. પ્રત્યક્ષ પ્રમાણે તેનું સાધક તે કારણે હતું નથી કે ચક્ષુ આદિ જે ઈન્દ્રિયે છે તે તેને પિતાના વિષય રૂપ બનાવી શકતી નથી. અનુમાનથી તેને ગ્રહણ કરી શકાતું નથી કારણ કે અનુમાનમાં સાધ્ય શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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