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________________ ૨૭૨ ___ प्रश्रव्याकरणसूत्रे त्वात् (१७) 'अब्भक्खाणं' अभ्याख्यानम्-असदोषारोपणम् , (१८) 'किविसं' किल्विषं-पापं-माणातिपातादिहेतुत्वात् , (१९) 'वलयं ' वलयमिव वक्रत्वाद् कुटिलमित्यर्थः, (२०) 'गहणं' गहनं गहनमिव गहनं-वनमिव दुरवगाहमित्यर्थः, (२१) 'मम्मणं' मन्मनम् = मन्मनमिव मन्मनम् अस्फुटत्वात् । (२२) 'नूमं' छादनं-परगुणाच्छादने पिधानमिव, (२३) 'नियई' निकृतिः-मायाच्छादनार्थवचनं विप्रलम्भनं वा, (२४) 'अप्पच्चओ' अप्रत्ययः अविश्वासः (२५) ' असं. १६ । इसके द्वारा असत्-अविद्यमान दोषों का आरोपण किया जाता है इसलिये इसका नाम अभ्याख्यान है १७ । यह प्राणातिपात आदि पापों का हेतु होता है इसलिये इसका नाम किल्विष है १८ । वलय के जैसा यह कुटिल रहा करता है इसलिये इसका नाम वलय है १९ । वन के समान यह दुरा वगाह होता है इसलिए इसका नाम गहन है २० । जिस प्रकार तोतली बोली में शब्दस्फुट नहीं हो पाते है उसी प्रकार इसमें भी वस्तु का वास्तविक भान अस्फुट रहा करता है इसलिये इसका नाम मम्मण है २१। जिस तरह ढक्कन वस्तु को ढांक देता है उसी प्रकार यह भी पर के गुणों को आच्छादन कर देता है इसलिए इसका नाम नूम है । नूम नाम छादनका है२२, इसमें बोलनेवाला अपनी मायाको ढकने का प्रयास करता है, अथवा दूसरों को ढकने का उपाय रचता है इसलिये इसका नाम निकृति है २३ । कोई भी सजन पुरुष झूठ वचन का विश्वास नहीं करते हैं इसलिये इसका नाम अप्रत्यय-अविश्वास है २४। होषोनु मा२५५ ४२राय छ तेथी तेनु नाम “ अभ्याख्यान " छ. (१८) ते प्राणातिपात योनु १२ हाय छ, तेथी तेनु नाम " किल्विष" छे. (१८) रायनाते हुटिव डाय छ, तेथी तेनु नाम “ वलय” छ. (२०) बनना ते गडन डाय छ, तेथी तेनु नाम “गहन" छ. (२१) म તોતડા વચને બરાબર સમજી શકાતાં નથી એજ પ્રમાણે અસત્ય ભાષણમાં ५५ पास्तवमा मछुट-२५२५ष्ट २।। ४२ छ, तेथी तेनु नाम “मम्मण" છે (૨૨) જેમ ઢાંકણ વડે વસ્તુને ઢાંકી દેવાય છે, એ જ રીતે અસત્ય વચન ५ गुणाने dis. नार बाथी तेनु नाम 'नूम' छ. 'नूम' सटसे माछा. દિન-આવરણ (૨૩) અસત્ય ભાષણમાં બેલનાર પિતાની માયાને ઢાંકવાને પ્રયાસ કરે છે, અથવા બીજાને ઢાંકી દેવાના ઉપાય રચે છે, તેથી તેનું નામ " निकृति" छ. (२४) ४ ५ Aart-1 पुरुष असत्य क्यन ५२ विश्वास भूतो नथी, तेथी तेनु नाम मप्रत्यय “ अविश्वास " छे, (२५) न्यायज्ञ पुरुष! શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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