SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० प्रश्रव्याकरणसूत्रे त्वात् , (४) 'मायामोसो' मायामृषा-मायापूर्वकत्वादसत्यभाषणस्य मायामृषेति नाम, (५) ' असंतकं ' असत्कं-अविद्यमानं-सत् यस्मिंस्तदसत्कम् असत्यम् , (६) 'कूडकवडमवत्थुगं' कूटकपटावस्तुकं तत्र कूट-परवश्वनाथै न्यूनाधिकभाषणं कपट भाषाविपर्ययकरणम् अवस्तु-अविद्यमानवस्तु कथनम् यथा-'जगतः कर्ता इश्वरः' इत्यादि कथनम् कूटादीनां त्रयाणां समानार्थकत्वादेकतमत्वे नैव गणनादिदमेकं नाम, (७) निरत्थयमवत्थयं च ' निरर्थकमपार्थकं च = निर्गतोऽयस्मिस्तत् = सत्यार्थ हीनम् , अपार्थम् अपगतार्थमसम्बद्धार्थमित्यर्थः, (८) 'विदेसगरहणिज्ज' बनाने के लिये प्रयोग से लाया जाता है इसलिये इसका दूसरा नाम शठ है २ । अनार्यजनों द्वारा यह बोला जाता है इसलिये इसका नाम अनार्य है ३ । यह असत्यभाषण माया पूर्वक होता है इसलिये इसका नाम मायामृषा है ४ । असत्यभाषण में जो विषय कहा जाता है वह उसरूप में नहीं होता है इसलिये इसका नाम असत्य है ५। परवंचन के लिये इसमें न्यूनाधिक बोलना पड़ता है, तथा इसमें बोलने की भाषा की शैली भी भिन्न प्रकार की होती है, और जो वस्तु इसमें कही जाती है वह अविद्यमान होती है, जैसे यों कहना कि जगत का कर्ता ईश्वर है सो यह कूटकपटावस्तुक नाम का असत्य है। यहां कूट कपट अवस्तुक, इन तीनों की समानार्थकता होने के कारण एक पद रूप से गिनती करली गई है ६। यह भाषण सत्यार्थ से हीन होता है इसलिये इसका नाम निरर्थक है। इसमें वाच्य अर्थ, संबंध विहीन रहता है इस કપટી લેકે દ્વારા પિતનું કાર્ય સાધવા માટે તેને પ્રવેગ કરાય છે, તેથી તેનું भानु नाम " शठ” छे, (3) मनाना ते मादाय रे तेथी तेर्नु alag नाम “अनार्य " छे (४) ते असत्य भाषe भाया पू१४ थाय छे तेथी तेनुं याथु नाम “ मायामृषा" छ. (५) असत्य भाषामा ले विषयनु थन ४२राय छ त यथार्थ-साया स्व३५-२ नथी तेथी तेनु पायभु नाम 'असत्य" છે (૬) અન્યની વંચનાને માટે તેમાં ન્યૂનાધિક બેલવું પડે છે, અને તે બેલ. વાની શિલી પણ જુદા જ પ્રકારની હોય છે, અને જે વસ્તુ તેમાં કહેવાય છે તે અવિદ્યમાન હોય છે, જેમ કે “જગતને કર્તા ઇશ્વર છે ” તે પ્રમાણે કહેવું ते ॥ ४२ ॥ ४॥२॥ असत्यने ' कूटकपटावस्तुक असत्य” हे छ. અહીં કૂટ, કપટ અને અવસ્તુક એ ત્રણે પદેથી સમાનાર્થકતા હોવાથી એક જ પદ રૂપે ગણવામાં આવેલ છે. (૭) તે ભાષણ સત્યાર્થ રહિત હોય છે તેથી તેનું નામ નિરર્થક છે તેમાં વાચ્ય અર્થ, સંબંધ રહિત હોય છે તેથી તેનું શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy