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________________ १२२ ___प्रश्रव्याकरणसूत्रे मघातैः चूर्णितः कुट्टितः, मुसण्ढिभिः शस्त्रविशे षैः संभग्ना-जर्जरीकृतः, मथितश्च-कुम्भ्यादौ-दधिवद् विलोडितः देहो येषां ते तथा, ' जंतोवपीलणफुरंतकप्पिया' यन्त्रोपपीडन स्फुरत्कल्पिता:-यन्त्रेषु उपपीडनेन-सम्मईनेन स्फुरन्तः वेपमानाः कल्पिता: कर्त्तिता ये ते तथा ' केइत्थ' केचिदत्र-केचित् नारकाः अत्र-नरकेषु 'सचम्मगा' सचर्मकाः चर्मसहिताः । विगत्ता 'विकृत्ताः छेदिताः मृत-पशुवद् उत्पादितचर्मशरीराः, णिम्मूलुल्लूणियकण्णोढणासिया' निर्मूलोल्लूनकोष्ठनासिका निर्मूलं-मूलतः उल्लूनाः कर्तिताः कौँ ओष्ठौ नासिका च येषां ते तथा, 'छिण्णहत्थपाया' छिन्नहस्तपादाः-छिन्ना हस्ताः पादा येषां ते तथा भूता नारकाः भवन्ति ॥ सू० ३४ ॥ अपि च- तत्थ य असि' इत्यादि__ मूलम्-तत्थ य असि-करकय-तिक्खकोंत-परस्सुप्पहारफालिय-वासीसंतच्छियंगमंगा कलकलमाणखारपरिसित्तगाढहैं ? इस बात को सूत्रकार कहते हैं-' तत्थ य मोग्गर इत्यादि। टीकार्थ-(मोग्गरपहारचुण्णिय-मुसंढि संभग्ग-महिय देहा) उन नरकोंमें मुद्गरों के प्रहारों से चूर्णित, मुसंढि जाति के शस्त्रविशेषों से जर्जरीकृत एवं कुंभी आदि में दही की तरह मथित है देह जिन्हों की ऐसे (केइत्थ) कितनेक नारकी नरकों में (जंतोवपीलण फुरंतकप्पिया ) यंत्रों में संमदन से कंपित होते हुए काट दिये जाते हैं । ( सचम्मणाविगत्ता) इनके शरीर के उपर की चमड़ी मृतपशु की चमड़ी कीतरह उसाड़ ली जाती है। (जिम्मूलुल्लूणियकण्णोढणासिया) मूलतः इनके ओष्ठ और नाक काट ली जाती हैं । ( छिन्न हत्थपाया ) हाथ पैर छिन्न भिन्न कर दिये जाते हैं । सू. ३४॥ तय छ, ते पात सूत्र॥२ वे मतावे छ- "तत्थ मोग्गर ” त्याह. "मोग्गर पहार चुण्णिय, मुसंढि संभग्ग-महिय देहा " ते न२ मा महाना પ્રહારથી ચૂણિત, મુસંઢિ નામના શસ્ત્રથી જર્જરિત કરેલ અને કુંભી આદિમાં हानी भोभनां शरी२ वसोवाय छे. तेवा " केइत्थ" टा४ ना२श्रीमान नामा "जंतोवपीलणफुरतकप्पिया" यत्रामा पासवानी भी पता डाय तवी सभा भी नाम मा छे. “ सचम्मणा विगत्ता" तेभनो शरीर 6५२नी यामी भृतपशुनी यामीनी म उतारी सेवामा मावे छे. “णिम्मूलु रुलूणिय कण्णोद्वणासिया " तमना 38, न मने न भूमाथी पी सेवामा मावे छे. “छिन्नहत्थपाया " मने ५५छिन्नभिन्न ४२वामां आवे छ॥सू-३४॥ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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