SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० २१ मन्दबुद्धिया कानूर जीवान् घ्नन्ति ? ८१ 'वाहा' व्याधाः = मृगघातकाः, ' क्रूरकम्मा ' क्रूरकर्माणः - दुष्टकर्मकारिणः'वाउरिया ' वागुरिकाः = वागुरा = मृगबन्धनं तया चरन्ति ये ते वागुरिका:= जालेन मृगबन्धकाः, 'दीविय - बंधणप्प ओग - तप्पगलजाल - चीरलगायसदन्भ वग्रा - कूड छलिया हत्था' द्वीपिक बन्धनप्रयोगतत्प्रगलजाल - चीरलगायसीदर्भवागुरा कूटछेलिकाहस्ताः - 'दीविय' द्वीपिका = व्याधस्य कृत्रिमा हरिणी या मृगाकfire स्थापयते 'घणपओग' बन्धनप्रयोगः = मृगादि बन्धनोपकरणं, 'तप्प' तप्तः = मत्स्यग्रहणीलघुनौका, 'गलं' बडिशं= मत्स्यवेधन कण्टक इत्यर्थः, 'जालं' प्रसिद्धं, वाले मनुष्य, (मच्छबंधा) मत्स्यबंध - मछलियों को मारने वाले धीवर ( साउनिया) शाकुनिक-पक्षियोंकी शिकार करने वाले चीड़ीमार, (वाहा) व्याध - मृग की शिकार करने वाले वहेलियाजन, ( कूरकम्मा ) क्रूर कर्मा- दुष्टकर्म करने वाले मनुष्य, (वाउरिया) वागुरिका जाल से मृग को बांधने वाले वाघरी लोग, (दीविय - बंधणप्प ओगतप्प - गल- जाल चीरलगा-यस- दग्भ-वग्गुरा - कूडछलिया हत्था ) दीपिका - व्याघ द्वारा मृगों को लुभाने के लिये बनाई गई कृत्रिम हरिणी, बंधन प्रयोगमृगादि जीवों को बाँधने के उपकरण, तत्र मछली पकड़कर जिसमें धीवर रखते जाते हैं ऐसी टोकरी, अथवा मछली जिस पर बैठकर पकड़ी जाती है ऐसी लघु नौका, गल-बडिश, वंशी जिसके अग्रभाग में आटा या जीव का कलेवर आदि लगाकर मच्छीमार उसे पानी में sto देते हैं मछली जैसे ही उसे खाती है तो उसका वह. नुकीला अग्रभाग उसके कंठ में विध जाता है, बस मच्छीमार फिर डोरे से बंधी कूरकम्मावाउरिया” “सोयरिया " सौ रि४ - सुपरनो शिर उरनारा मनुष्यो, "मच्छबंधा" भत्स्यण'ध-भाछसियाने भारनार भाछीभारी, “ साउणिया ” शत्रुनि - पक्षीखोने શિકાર કરનાર પારધિઓ वाहा " व्याध-भृगनो शिअर ४२नार शिअरीमो, वागुरिक्ष- 66 " कूरकम्मा ” २अर्भा-हुष्ट उर्भ पुरनाशं मनुष्यो, “वाउरिया " लगमां भृगने ईसावनाश वाघरी सोडी, “दीविय, बंधणप्पओगे तप्प, डाल, जाल, चीरल्लागा - यस, दव्भ' वग्गुरा, कूडछलिया हत्था દ્વીપિકા-વ્યાઘ્ર દ્વારા મૃગેાને લલચાવવાને માટે બનાવેલી કૃત્રિમ હરિણી, ખ ધનપ્રયોગ–મૃગાદિ જીવાને આંધવાના સાધના, તપ્ર-મછલીને પકડીને માછીમાર જેમાં મૂકે છે તે ટોપલી, અથવા જેમાં બેસીને માછલાં પકડવામાં આવે છે તે નાની નૌકા, ગલ-ખડિશ, ખશી—જેના અગ્રભાગ પર લોટની કણેક કે અળસિયાં આદિ જીવાનાં કલેવર લગાડીને માછીમાર તેને પાણીમાં નાખે છે, માછલી જેવું તે ખાવા જાય છે. કે તરતજ તેનેા અણીદાર અગ્રભાગ તેના કંઠમાં પરાવાઇ જાય છે, શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર "
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy