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________________ सुदशिनोटोका अ० १४ पृथिवीकायहिंसाकारणनिरूपणम् ६५ 'घर' गृहाः प्रसिद्धा, “सरण' शरणानि सामान्यगृहाणि, 'लयण' लयनानि पर्वतवर्ति पाषाणगृहाणि, 'आवण' आपणाः हट्टाः, 'वेइय' वेदिका परिष्कृता भूमिः, 'देवकुलानियक्षगृहाणि, 'चित्तसभा' चित्रसभा-चित्रयुक्तसमास्थानम् , 'पवा' प्रपा-पानीयशाला 'प्याऊ' इति भाषा प्रसिद्धा, 'आययण' आयतनं यज्ञशाला, 'आवसह' आवसथ:-तापसाश्रमः, 'भूमिघर' भूमिगृह-गुहारूपं पृथिवीगृहम् , 'मंडवाण' मण्डपा:=पटनिर्मितगृहास्तेषां, 'कए' कृते-एतनिमित्तमित्यर्थः । तथा 'भायण भंडोवगरणस्स' भाजनभाण्डोपकरणस्य भाजनानि=सौवर्णराजतादीनि, भाण्डानि-मृण्मयानि शरावादीनि, उपकरणानि=उदूखल मुसलादीनि एतेषां समाहारद्वन्द्वे-भाजनभाण्डोपकरणम् , तस्य च 'विविहस्स य' विविधस्य च-अनेक मकारस्य 'अट्ठाए' अर्थाय-प्रयोजनाय ‘मंदबुद्धिया' मन्दबुद्धिका स्वपरहिताहितविवेकविकलाजनाः, 'पुढवीं पृथिवीं 'हिसंति' घ्नन्ति ॥सू०१४॥ (घर) घर के निमित्त (सरण ) शरण-सामान्यगृह के निमित्त (लयण) लयन-पर्वतवति पाषाण घर के निमित्त (आवण)आपण-हाट के निमित्त (वेइय ) वेदिका-चोतरे के निमित्त (देवकुल) देवकुल-यक्षायतन के निमित्त (चित्तसभा) चित्रसभा-चित्रयुक्त सभा के निमित्त (पवा) प्रपा-प्याऊ के निमित्त "आययण" आयतन-यज्ञशाला के निमित्त ( आवसह ) अवसथ-तापसों के आश्रम के निमित्त (भूमिघर) भूमिगृह के निमित्त (मंडवाणकए) मंडप के निमित्त तथा ( भायण भंडोवगरणस्स य विविहस्स य अट्ठाए पुढविं हिंसंति मंदबुद्धिया) नाना प्रकारके भाजन भांडोपकरणके निमित्त मन्दबुद्धिजन पृथिवीकाय जीवोंकी हिंसा करतेहैं । ___भावार्थ-पृथिवी कायिक एकेन्द्रिय जीव है। इस एकेन्द्रिय जीव की हिंसा करने का निमित्त-प्रयोजन क्या होता है-इस विषय को सूत्र "घर" धरने निमित्त "सरण” १२९५-सामान्य गृहने निभित्ते “लयण" सयन. पतति पाषाण धरने निमित्त “आवण” २।५-दुानने निभित्ते “वेइय" वा-यातशन निमित्त "देवकुल" हेवमुस-यक्षायतनने निमित्त "चित्तसभा" थिसमा-त्रियुत समान निमित्त “ पवा" अपा-५२५ निमित्त "आययण" मायतन या निमित्त "आवसह" मावसथ-तापसेना सश्रमाने निमित्त "भूमिघर" भूभिडने निमित्त 'मंडवाणकए” भ७पने निभित्त, तथा "भायण भंडोवगरणस्स य विविहरस य अदाए पुढवि हिंसंति मंदबुद्धिया” भने प्रधान ભાજન, ભાંડે પ્રકરણને નિમિત્તે મંદ બુદ્ધિવાળા લોકો પૃથ્વીકાય જીવોની હિંસા કરે છે. ભાવાર્થ–પૃથ્વીકાયિક જીવ એક ઈન્દ્રિયવાળા હોય છે, એ એકેન્દ્રિય જીવની હિંસા કરવામાં નિમિત્તે, પ્રજને કયાં ક્યાં હોય છે, તે વિષે સૂત્ર શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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