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________________ प्रश्नव्याकरणसूत्रे शरटा=कुकलाशाः, जाहकाः = कण्टकव्याप्साङ्गाः, मंगुसाः = भुजपरिसर्पविशेषाः, खाडहिलाः=श्वेतकृष्णरेखाऽङ्कित देहाः भुजपरिसर्पविशेषाः। चातुष्पदिकाः= चतुश्चरणा भुजपरिसर्पविशेषाः । ' घरोलिया ' गृहगोधिकाः ' छिपकली घरोली ' इति प्रसिद्धाः । एतेषां द्वन्द्वः । एवमादीन् सरीसूपगणान् 'घ्नन्ती' ति सम्बन्धः ॥ | सू० ९ ॥ अथ खेचरभेदानाह - ' कादंब' इत्यादि । ४६ मूलम् - कादंब-कंक- बलाका-सारस आडा - सेडी - -कुललवंजुल - पारिप्पव - कीर-सउण - दीविय - हंस - धत्तरटू -भास - कुली - रात्रि में चोरी करने को ऊपर दुमंजिले आदि मकान पर चढ़ जाते हैं यह कमन्द की तरह भित्ती पर लटक जाती है । उन्दुर नाम भूषक का है । नकुल नौला को कहते हैं । शरट नाम कृकलाश का है, यह गले में लाल होता है और बैठा हुआ अपना मस्तक हिलाया करता है, छिपकली जैसा इसका आकार होता है, मारवाड़ आदि राजस्थान में " करंगेटा' कहते हैं । जाहक वे भुजपरिसर्पविशेष हैं कि जिनके शरीर पर कांटे रहते हैं । मंगुस भी इसी प्रकार के भुजपरिसर्प विशेष हैं । खाडहिल को हिन्दी में गिलहरी कहते हैं, इसके शरीर पर जो रोमराजी होती है वह सफेद और काली रेखा से युक्त होती है, यह वृक्षों पर रहती है। चातुष्पदिक चार पैरों वाला भुजपरिसर्प विशेष होता है । घरोलिया को हिन्दी में छिपकली कहते हैं, यह मकानों के भीतर भीत पर छत पर चिपकी रहती है। निर्दयी हिंसक जीव इन्हें तथा इनसे भिन्न जो और भी भुजपरिसर्प विशेष हैं उन्हें मारते हैं । सृ. ९ ॥ કે તેને પકડીને રાત્રે ચાર ચારી કરવાને માટે એ ત્રણ માળના મકાનપર ચડી लय छे, ते उणन्धनी प्रेम लींतपर सटडी लय छे. "उदुर” भेटले ४२. " ण उल” भेटले नाणीयो, “सरड" मेटले अर्थिडे. तेनुं गणु सास होय छे भने ते मेो બેઠા પેાતાનું શિર હલાવ્યા કરે છે, ગરાળી જેવા તેના આકાર હોય છે. મારવાડ આદિ રાજસ્થાનમાં તેને “ કરગેટચા ” કહે છે, જાહક, એ એક જાતના ભુજપરિસર્પના ભેદ છે. તેમના શરીર પર કાંટા હેાય છે. મ`ગુસ પણ એજ પ્રકારે - परिसर्प छे, “खांडहिल" मेटले मिसोबी तेना शरीरयर ने इवाटी होय છે તે સફેદ અને કાળી રેખાથી યુક્ત હોય છે, તે વૃક્ષેા પર રહે છે. તે ચાતુव्यहि, यार युग वाजु लुभ्यरिसर्य विशेष छे. 'धरोसिया' तेभने રાતીમાં ગરાળી કહે છે. તે મકાનેાની અંદર ભીંત તથા છત પર ચાટી રહે છે. નિર્દય હિસક લેાકેા તેમની તથા તેમના સિવાયના ખીજા' પણ જે ભુજપ રિસપ વિશેષ છે તેમની હત્યા કરે છે | સૂ.-હા શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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