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________________ % अनगराधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० १६ द्रौपदीचरितवर्णनम् २७९ सरति, निर्गत्य यत्रैव ग्रामाकरनगरेषु अनेकानि राजसहस्राणि, तत्रैवोपागच्छति उपागल्य यावत्-समयसरत, ' समवसरत' इति पर्यन्तं दूतवाक्यं पूर्ववद् बोध्यम् । ततः खलु तानि अनेकानि राजसहस्राणि तस्य दूतम्यान्ति के एतमर्थ श्रुवा निशम्य हृष्टतुष्टाः सन्तः दूतं सत्कारयन्ति-सत्कृत कुर्वन्ति संमानयन्ति,सत्कार्य, समान्य प्रतिविसर्जयन्ति । ततः खलु ते वासुदेवप्रमुखा बहुसहस्रसंख्यका राजानः, प्रत्येकं २ स्नाता: जेणेघ गामागर जाव समोसरह) वह दशवां दूत उसी तरह सेपहिले के दूतों के समान कांपिल्य नगर से निकला और निकल कर जहां ग्राम आकर और नगर थे-वहां पर अनेक राजसहस्त्रों के पास गया-वहां जाकर शिष्टाचार पूर्वक उसने सब से इस प्रकार कहा कि काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की पुत्री द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला है-सो आपसब लोग द्रुपद राजा के ऊपर कृपा करके जल्दी कांपिल्य पुर नगर पधारे (तएणं ताई अणेगाइं रायसहस्साइं तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ट तं दयं सक्कारेंति, सक्कारित्ता सम्माणति, सम्माणित्ता पडिविसज्जेति ) इस प्रकार वे अनेक सहस्त्र राजा उस दूत के मुख से इस समाचार को सुन कर और उसे अपने अपने २ हृदयों में अवधारित कर बहुत ही अधिक आनन्द से प्रमुदित घनकर परम संतोष को प्राप्त हुए। उन्होंने उस दूत का सत्कार किया सत्कार करके सन्मान किया और सन्मान करके फिर उसे पीछे विसर्जित कर दिया-भेज दिया। (तएणं ते वासुदेव पामुक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेय समोसरह ) त शमा त पानी में चाय नारथी नीयो सने નીકળીને જ્યાં ગ્રામ આકર અને નગર હતા ત્યાં અનેક સહસ્ર રાજાઓની પાસે ગયે. ત્યાં જઈને નમ્રપણે તેણે સહતે આ પ્રમાણે કહ્યું કે કપિલ્ય નગરમાં ૫૮ રાજાની પુત્રી દ્રૌપદીનો સ્વયંવર થવાનું છે તે આપ સૌ દ્રપદ २४ ५२ रीने मGिet i.५६य नगरमा ५धारी. (तएण ताई अगणाई रायसहस्साई तस्स दूयस्स अतिए एयम सोच्चा निसम्म हटू० त दूर सक्कारे ति. सकारित्ता, सम्माणे ति, सम्माणित्ता, पडिविसज्जे ति ) | शते સહ રાઓ તે દૂતના મુખથી આ સમાચાર સાંભળીને અને તેને પિતાના હૃદયમાં ધારણ કરીને ખૂબ જ પ્રસન્ન તેમજ પરમ સંતુષ્ટ થયા. તેઓએ વ્રતને સત્કાર કર્યો અને સન્માન કર્યું ત્યારપછી તને તેઓએ विहाय पी. ( तरण ते वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेय २ पहाया શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૩
SR No.006334
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages867
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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