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________________ अनगारधर्मामृतवषिणी टीका अ0 ८ अङ्गराजचरित निरूपणम् ३७५ ऽवतरणस्थानं वर्तने, तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य च पोतं नावं, 'लवेंति, लम्बयन्ति तीरस्थानेकशङ्कुषु रज्ज्वादिभिर्निबध्य स्थिरी कुर्वन्ति । लंबित्ता' लम्बयित्वा श. कटी शाकटिक लधुशकटवहच्छकटानां समूहं सज्जयन्ति-नवीनोपकरणरज्वादिभिः परिप्कुर्वन्ति, सज्जयित्वा तं गणिमं धरिमं मेयं परिच्छेयं चतुर्विधं क्रयाणकसमूह शक्टीशाकटिके ' संकामेंति संक्रामयन्ति स्थापयन्ति, संक्राम्यतेऽरहन्नक प्रमुखाः सांयात्रिकाः शकटीशाकटिक योजयन्ति-बलोवर्दादिभियोजितं कुर्वन्ति, योजयित्वा शकटारूढास्ते यत्रैव मिथिला राजधानीवर्तते तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य मिथिलायां राजधान्यां बहिरग्रोद्याने प्रधानोद्याने शकटीशाकटिकं मोचयन्ति-शकटेभ्यो बलीवर्दान् पृथक्कुर्वन्ति, मोचयित्वा मिथिलायां राजधान्यां तन्मसे जहां गंभीर नाम का नौका के ठहर ने का स्थान था (वंदर गाह था) वहां पहुंचे । ( उवागच्छित्ता पोयं लबेंति ) वहां पहुंच कर उन लोगों ने नौका को खड़ा कर दिया-तीर स्थित अनेक खूटों में रज्ज्वादि से उसे बांधकर स्थिर कर दिया । ( लंबित्ता सगड़सागडं सज्जेंति ) खड़ा करके छोटी छोटी गाडियों को और गाड़ों को तैयार किया-नवीन उपकरण एवं रज्ज्वादि से उन्हें सज्जित किया। ( सज्जित्ता तं गणिमं ४ सगडि ४ संकामेति ) सज्जित करके फिर उन्हों ने उस गणिम, धरिम, मेय एवं परिच्छेद्य रूप चतुर्विध-क्रयाणक को नौका से उतार कर उन गाडी गाडों में भरा (संकामित्ता सगडी० जोएंति, जोइत्ता जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति ) भर कर फिर उन्हों ने उन्हें जोता-जोत कर जहां मिथिला नगरी थी वहां वे आये । ( उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सागडंसगडी मोएइ मोइत्ता मिहिलाए रायहाणीए तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायरिहं पाहुडं कुंडलजुयलं (उवागाच्छित्ता पोय लवेति ) त्यां पहचान तमासे नावने भी राजी. छिनारानी होरीमाथी तेने सारीरीते सांधी धी. (लंबित्ता सगड सागर्ड सज्जे ति ) त्या२ पछी नानी डासा तभक भोट मान हारी। मेरे साधनाथी स . ( सज्जिता त गणिम ४ सगडि ४ सकामेति ) સજજ કર્યા બાદ તેમણે ગણિમ, ધરિમ, મેય અને પરિચછેદ્ય રૂપ ચાર પ્રકારની વેચાણની વસ્તુઓને નાવમાંથી ઉતારીને ગાડીઓ અને ગાડાઓમાં ભરી (संकामित्ता सगडी० जोएंति, जोपत्ता जेणेब महिला तेणेव उवागच्छंति) સામાન ભર્યા પછી તેમણે ગાડીએ અને ગાડાઓને જોતર્યા અને જોતરીને જ્યાં મિથિલા નગરી હતી ત્યાં ગયા. ( उवागच्छित्ता महिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडीसागडं શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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