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________________ अगरधर्मामृतवर्षिणी टीका.सू.१३ अकालमेघ दोहदनिरूपणम् १७९ , यन्ती, तत्र-क्रीडा-सहहास्य विनोदादिरूपा रमणं = सखिभिः सह खेलनं, तयो क्रीडा रमणया: क्रिया, तां परिहापयन्ती परित्यजन्ती, 'दीणा दीना=दुःखिता, 'दुम्मणा' दुर्मना= उद्विग्नचित्ता, निराणंदा' निरानन्दा= हर्षसुखवर्जिता, 'भूमिगयदिडिया' भूमिगत दृष्टिका घराघृतदृष्टिका 'ओहयमणसंकप्पा' अपहृतमनः संकल्पा=तत्र-अपहतो=नष्टो मनसः संकल्पः = कर्तव्याकर्तव्यविवेचनरूपो यस्याः सा, 'जाच झियाय' यावत् ध्यायति - यावच्छन्देन - करयलपल्हत्थमुही, अट्टज्झागोवगया' इति संग्रहः तेन करतलपर्यस्तमुखी, आर्तध्यानोपगता, इतिच्छाया, तत्र करतले = हस्ततले 'हथेली 'ति भाषायां पर्यस्तं = निक्षिप्तं मुखं यया सा तथा, अर्तध्यानोपगता=अकालमेघवर्षण जनितानन्दाननुभवात् शोकक्रान्ता 'ज्ञियाय ' ध्यायति - आर्तध्यानं करोतीत्यर्थः, 'तपणं' ततःखलु 'तीसे' तस्याः धारिण्या क्रीडा तथा उनके साथ खेलना इन दोनों क्रियाओं को उसने छोड दिया और केवल ( दीणा दुम्मणा) वह दुःखित एवं दुर्मना रहने लगी (निराणंदा भूमिर्यादडिया ओहयमणसंकप्पा जाव झियायई) इस तरह हर्षसुख से वर्जित बनी हुई वह सदा नीचे की ओर ही अपनी दृष्टि रखे रहती और कर्तव्या कर्तव्य विवेधनरूप मानससंकल्प जिसका नष्ट हो चुका है ऐसे वह धारिणी देवी रातदिन आर्त ध्यान रूप चिन्ता में मग्न बन गई। यहां यावत् पद से 'करयल पल्हत्थमुही, अहज्झाणोवगया" इन पदोका संग्रह हुआ है। जिस समय मनुष्य अधिक चिन्ता मग्न रहने लगता है उस समय वह हथेली पर मुख घर कर बैठा हुआ दिखलाई पडता है - और रातदिन आतध्यान किया करता है । यही स्थिति उस रानीकी भी रहने लगी थी यही बात इन पदों द्वारा व्यक्त को गई है। (तएणं) इसके बाद (तीसे) સખીઓની સાથેના હાસ-પરિહાસ વિનેદ, ક્રીડાએ અને રમત ગમત આ બધા એણે त्यक द्दीघां डुतां, भने ते ई (दोणा दुम्मणा) हीन भने अन्यमनस्सु थाने डिक्सो पसार उरवा सागी. (निराणंदा भूमिगयदिट्टिया ओहयमणसंकप्पा जाव झियागड) આરીતે વિષાદયુકત થઇને તે હંમેશાં પોતાની નજર નીચે જ રાખતી અને ધીમે ધીમે શું કરવું અને શું નહિ કરવું આ જાતના વિવેક એટલે કે વ્યાકતવ્ય રૂપ માનસ સકલ્પ જ નષ્ટ થઈ ગયા. અને આ રીતે તે ચિંતામાં ડૂબી ગઇ. અહી यावत्' पदृथी "करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया " आ पहनो संग्रह थाय છે. માણસ વધારે ચિન્તિત થાય છે, તે વખતે હથેળી ઉપર માં રાખીને બેસી રહે છે અને રાતદિવસ આત ધ્યાન—ચિન્તાં–માં જ ડૂબી રહે છે. ધારિણીદેવીની એજ હાલત थ गई. मा पोथी मे वात स्पष्ट अश्वामां भावी छे. (त एणं) त्यार पछी શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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