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________________ भगवतीसूत्रे नव्याः । द्वीन्द्रियप्रकरणापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदर्शयति-'नवरं' इत्यादि, नवरविशेषो यथा-'आदिल्लेसुतिसु वि गमएस' आयेषु त्रिष्वपि गमकेषु नवसु गमकेषु प्रयो विभागाः आदिमध्यमपश्चिमाः, तत्राधे गमत्रये 'सरीरोगाहणा' शरीराबगाहना 'जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं' जघन्येन अालस्यासंख्येयभागम् 'उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई उत्कृष्टतस्त्रीणि गव्यूतानि, प्राथमिकगमत्रयेऽपि जघन्योत्कृष्टाम्यां शरीरावगाहना अङ्गुलस्यासंख्यातभागप्रमाणा त्रिगम्यूति चाहिये, यही बात सूत्रकारने 'एवं चेव नवगमगा भाणियव्वा' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रगट की है, इस सूत्रपाठ द्वारा यह समझाया गया है कि जिस प्रकार से हीन्द्रिय जीवों के नौ गम कहे गये हैं उसी प्रकार से तेइन्द्रिय जीवों के भी नौ गम कहना चाहिये, परन्तु द्वीन्द्रिय प्रकरण गत नौ गमकों की अपेक्षा तेइन्द्रिय के गमकों में जो अन्तर है उसे सूत्रकार ‘णवर आदिल्लेसु तिसु वि गमएसु' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट करते हैं-वे कहते हैं कि आदि के तीन गमकों में अर्थात् इन नव गमको में तीन विभाग होते हैं जैसे आदिम, मध्यम और पश्चिम ऐसे तीन विभाग हैं-इनमें आदि के तीन गमों में 'सरीरोगाहणा' शरीर की अवगाहना 'जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग' जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और 'उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई उत्कृष्ट से तीन कोश प्रमाण है, तात्पर्य यह है कि प्राथमिक तीन गम में जघन्य और उत्कृष्ट से शरीरावगाहना अङ्गुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण १ मे. मे४ वात सूत्रारे एवं चेव नव गमगा भाणियव्वा' मा સૂત્રપાઠથી પ્રગટ કરેલ છે આ સૂત્રપાઠથી એ સમજાવ્યું છે કે-જે રીતે બે ઈદ્રિયવાળા ના સંબંધમાં નવ ગમો કહ્યા છે, એજ રીતે ત્રણ ઇન્દ્રિય વાળા જીના સંબંધમાં પણ નવ ગમો કહેવા જોઈએ. પરંતુ બે ઇન્દ્રિય પ્રકરણના નવ ગની અપેક્ષાથી ત્રણ ઇંદ્રિયવાળા જીવના ગમમાં જે ફેરફાર छे, ते सूत्रा२ ‘णवरं आदिल्लेसु तिसु वि गमएसु' मा सूत्रपाथी मताव છે. તેઓ કહે છે કે-પહેલાના ત્રણ ગમેમાં પહેલે, મધ્યમ, પશ્ચિમ એ રીતે त्रण विभाग ४छे. तभा ५साना त्रए आमामा ‘सरीगाहणा' शीनी साना 'जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग' धन्यथी मन मस. ज्यातमा लाश प्रभानी भने 'उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई' थी 16 પ્રમાણ વાળી છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે પહેલા ત્રણ ગમોમાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી શરીરની અવગાહના આગળના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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