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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०१४ परमाण्वादीनां सैजत्वादिकम् ९४७ सिया खंधा देसेया दवट्टयाए असंखेनगुणा' असंख्यातमदेशिकाः स्कन्धा देशैजा द्रव्यार्थतया पूर्वापेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्तीति१४ । 'ते चेत्र पएसट. याए असंखेनगुणा' ते एव-देशेजा संख्यातप्रदेशिका एवं प्रदेशार्थतारूपेण पूर्वापेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्तीति१५ । 'परमाणुपोग्गला निरेया दबटअपएसट्टयाए असंखेज्ज गुणा' परमाणु पुद्गला निरेजा द्रव्यार्था प्रदेशार्थतया पूर्वापेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्ति१६ । 'संखेज्जाएसिया खंधा निरेया दबट्टयाए संखेनगुणा' संख्पातपदेशिकाः स्कन्धा निरेजा:-कम्पनरहिताः द्रव्यार्थतारूपेण पूर्वापेक्षया संख्यातगुणा अधिका भवन्तीति१७ । 'ते चेव पए सट्टयाए संखेनगुणा' ते एव निरेजसंख्यातप्रदेशिकस्कन्धा एवं प्रदेशार्थतया पूर्वापेक्षया संख्यातगुणा प्रदेशरूप से पूर्वकी अपेक्षा असंख्यातगुणे अधिक हैं ।१३॥ 'असं. खेज्जपएसिया खधा देसेया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा' असंख्यात प्रदेशिक स्कन्ध जो देशज हैं द्रव्यरूप से पूर्व की अपेक्षा असंख्यातगुणे अधिक हैं ।१४॥ ते चेव पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा' और ये ही देशज असंख्यात प्रदेशिक स्कन्ध प्रदेशरूप से पूर्व को अपेक्षा असंख्यातगुणे अधिक हैं ।१५॥ ‘परमाणुगेग्गला निरेया दबट्ट अपएसट्टयाए अंसखेज्जगुणा' निरेज परमाणु पुद्गल हैं वे द्रव्यार्थ अप्रदेशार्थरूप से पूर्व की अपेक्षा असंख्शातगुणे अधिक हैं ।१६॥ 'संखेज्जपएसिया खधा निरेया बट्टयाए संखेज्जगुणा" निरेज अकम्प संख्यात प्रदेशिक स्कंध द्रव्यरूप से पूर्व की अपेक्षा संख्यातगुणे अधिक हैं।१७ ते चेव पएसट्टयाए संखेज्जगुणा' और वे ही निरेज संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध प्रदेशों के रूप से पहिले की अपेक्षा संख्यातगुणें याए असंखेज्जगुणा' असभ्यात प्रशावामा २४ । २ देश छे. त द्रव्यपाथी ५3ai ४२ता अस यातना वधारे छे. ११४. 'ते चेव एएसट्टयाए असंखेज्जगुणा' भने माहेश असण्यात शापामा प्रवेशपयाथी पsai ४२di ससच्यात वधारे छे. १५. 'परमाणुपोग्गला निरेया दव्वदअपएस. ट्रयाए असंखेज्जगुणा' निरे २ ५२भाशु से छे तेथे। द्रव्याय अहे. साथ पाथी पहेस ४२ai मध्यात! पधारे छे. 1१६'सखेज्जपपसिया खधा निरेया दनदयाए सखेज्ज गुणा' निरे-नि०४५ सयातशावामधे। द्रव्यपाथी ५i ४२di सच्यात बंधारे छ ।१७। 'ते चेव पएसदयाए संखेज्जगुणा' भन नि0-1°५ सयातप्रदेशा॥ २४ । प्रदेशपयाथी શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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