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________________ प्रमेयचन्द्रिका ठीका श०२५ उ.४ सू०१४ परमाण्वादीनां सैजत्वादिकम् ९४३ ख्यातप्रदेशिकाः स्कन्धा निरेजा द्रव्यार्थतया निरेज संख्यातमदेशिक स्कन्धापेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्तीति ११ । 'पएसट्टयाए' प्रदेशार्थतया - प्रदेशार्थरूपेण, 'सम्वत्योवा अणतपएसिया' सर्वस्तोका अनन्तप्रदेशिकाः, स्कन्धाः सर्वे जाः प्रदेशार्थतया - प्रदेशार्थतारूपेण सर्वांशे सकम्पा अनन्तमदेशिकाः स्कन्धाः सर्वतः स्तोका भवन्तीति । ' एवं परसट्टयाए वि एवम् द्रव्यार्थतयेव प्रदेशार्थतया अपि अल्पबहुत्वमवगन्तव्यमिति । 'णवरं परमाणुपोग्गला अपए सट्टयाए भाणिव्वा' नवरम् - केवलं द्रव्यार्थ पक्षात् प्रदेशार्थतापक्षे एतावद्वैलक्षण्यं यत् अत्र प्रदेशार्थता पक्षे परमाणुपुद्गला अपदेशार्थतया मणितव्याः, परमाणूनां निष्पदेशत्वात् 'संखेज्जपएसिया खंधा निरेया पट्टयाए असंखेज्जगुणा' संख्यात प्रदेसंख्यातगुणे अधिक हैं। 'असंखेज्जपएसिया खंधा निरेया दव्बट्टयाए असंखेज्जगुणा' निष्क्रम्प असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्यरूप से निरेज संख्यात प्रदेशिक स्कन्धों की अपेक्षा असंख्यातगुणें अधिक हैं। 'पएस याए सम्बत्थोवा अनंत एसिया०, प्रदेशार्थता की अपेक्षा से सर्वांशों में सकम्प अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध सब से कम है । 'एवं पएसयाए वि' इस प्रकार द्रव्प्रार्थता की तरह प्रदेशार्थता से भी अल्प बहुत्व जानना चाहिये । 'नवर' परमाणुवोग्गला अपएसट्टयाए भाणियव्वा' केवल द्रव्यार्थता पक्ष से प्रदेशार्थता पक्ष में इतनी ही भिन्नता है कि यहां प्रदेशार्थता पक्ष में परमाणुपुद्गल अप्रदेशार्थरूप से कहना चाहिये । क्योंकि परमाणुओं को एक प्रदेश से अतिरिक्त अधिक प्रदेश नहीं होते हैं । इसीलिये उन्हें निष्प्रदेशी कहा गया है । 'संखेज्जपएसिया खंधा निरेया पट्टयाए असंखेज्जगुणा' अकम्प जो संख्यातप्रदेशिक सभ्याता वधारे छे. 'असंखेज्जपएसिया खंधा निरेया दव्वटुयाए असंखेज्जगुणा' निष्णुंय असंख्यात अहेशोवाणा २६ द्रव्ययसाथी निरेभ सख्यातप्रदेशेावाणा रम्घा अस्तां असभ्याता वधारे छे. 'परसट्टयाए Gorत्थोवा अनंत एसिया' सर्वाशथी सम्य अनंत प्रदेशोवाणा उधो सौथी छाछे. 'एवं पट्टयाए वि' ४ प्रमाणे द्रव्यार्थ पशु प्रमाणे अहेशार्थ यासाथी यशु यदप महुपाशु समभवं 'णव' परमाणुपोग्गला अपएसट्र्याए माणि ચન્ના' કેવળ દ્રવ્યપણા નાપક્ષ કરતાં પ્રદેશા પણાના પક્ષમાં એટલુજ ભિન્ન પશુ છે કે અહીંયાં પ્રદેશા પણાના પક્ષમાં પરમાણુ પુદ્ગલ અપ્રદેશા રૂપથી કહેવા જોઈએ. કેમકે—પરમાણુઓનું એકપ્રદેશ શિવાય વધારે પ્રદેશપણું होतु नथी तेथी तेयाने निष्प्र देशी - प्रदेश विनाना ह्या छे. 'संखेज्जपएसिया શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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