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________________ ९१२ भगवतीसो प्रदेशिकेषु मध्ये निष्कम्मा अनन्तपदेशिकाः स्कन्धा च्यार्यतारूपेण सर्वेभ्यः स्तोका भवन्तीत्यर्थः१ । 'अणसपएसिया खंधा सेया दवट्ठयाए अणंतगुणार' अनन्तपदेशिकाः स्कन्धाः सैजा द्रव्यार्थतया अनन्तगुणाः, निरेजानन्तमदेशिकस्कन्धापेक्षया सैनानन्तमदेशिकार स्कन्धा द्रव्यार्थतारूपेणानन्तगुणा अधिका भवस्तीत्यर्थः२ । 'परमाणुगोग्गला सेया दमट्टयाए अणंतगुणा' परमाणुपुरलाः सैजा द्रव्यार्यतया अनन्तगुणाः, निरेजानन्तप्रदेशिकस्कन्धापेक्षया द्रव्यार्थतारूपेण सैजाः परमाणुपुद्गला अनन्तगुणा अधिका भवन्तीत्यर्थः३। 'संखेजपएसिया खंधा सेया दट्टयाए असंखेज्जगुणा' संख्येयपदेशिकाः स्कन्धाः सजा द्रव्या. थतारूपेण सैजपरमाणुपुद्गलापेक्षा असंख्येयगुणा अधिका भवन्तीत्यर्थः । 'असंखेन्जपएसिया खंधा सेया दबट्टयाए असंखेज्जगुणा' असंख्यातपदेशिका: स्कन्धाः सैजा द्रव्यार्यतया सैजसंख्यातादेशिकस्कन्धापेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्तीति५ । 'परमाणुपोग्गला निरेया दवयाए असंखेज्जगुणा६' परके बीच में निष्कम्प अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्यार्थतारूप से सबों से कम हैं १॥ "अणंतपएसिया खंधा सेया दवट्टयाए अणंतगुणा" इनकी अपेक्षा जो सकम्प अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैं वे द्रव्यार्थतारूप से अनन्त गुणे अधिक है । 'परमाणु पोग्गला सेया दव्वट्ठयाए अणतगुणा' इनसे द्रव्यरूप से अनन्तगुणें वे परमाणु पुद्गल हैं जो सकम्प हैं ३। 'संखेज्जपए. सिया खंधा सेया दबट्टयाए असंखेजगुणा' इन से असंख्यातगुणे द्रव्य रूपसे वे स्कन्ध हैं जो सकम्प हैं और संख्यातप्रदेशों वाले हैं ४। 'असंखेजजपएसिया खंधा सेया दब्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा'५। इनसे असंख्यातगुणे द्रव्यरूपसे वे स्कंध हैं जो असंख्यातप्रदेशोंवाले हैं एवं सकम्प हैं। 'परमाणुपोग्गला निरेया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा'६। इनसे असंख्यात. અને અનંતપ્રદશવાળા ધામાં નિષ્કપ અનંતપ્રદેશોવાળા છે દ્રવ્યપણાથી सीथी भछे १ "अण तपएसिया खंधा सेया दुव्वयाए अणतगुणा" तेना ४२तां २ ५ अनतप्रशाणा २४ । छे. अन तnal qधारे छे २ "परमाणु पोग्गला सेया दव्वयाए अणतगुणा" तनाथी द्रव्यपथी मन त ५२. भार पद्धता छ, २ स४५ छ. 3 'संखेजपएसिया खंधा सेया दव्वद्रयाए असंखेज्जगुणा' तनाथी मसभ्यात द्र०५५५थी ते २४ थे। छे २ स४५ छ भने सध्यातशामा छ, ४ 'असंखेज्जपएसिया खंधा सेया दव्वट्रयाए संखेज्जगुणा५' तनाथी मसभ्याता द्रव्यमाथी ते २४५ छे, रे मन्यात प्रदेशावाजा छ, भने स४५ छ. ५ 'परमाणुपोग्गला निरेया दवढयाए असंखेज्जगुणा ६' तेना २तां द्र०याथी सभ्याताए। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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