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________________ DDREAL प्रमेयचन्द्रिका टीका २०३५ उ.४ सू०१२ पुद्गलानां सकम्प-निष्कंपत्वनि० ८९७ सिए' एवं यावदनन्तप्रदेशिका परमाणुपुद्गलवदेव जघन्यतः समयैकमात्रम् उत्कृ. टत आवलिकाया असंख्येयभागं यावद द्विप्रदेशिकादारभ्य अनन्तमदेशिकपर्यन्ता स्कन्धः सकम्पो भवतीति भावः । 'परमाणुपोग्गला गं भंते ! सेया कालओ केव. चिरं होति' परमाणुपुद्गलाः खलु भदन्त ! सैजाः कालत: कियचिरं भवन्तीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'सम्बद्धं' सर्वादाम् सर्वकालं यावत् परमाणवः सकम्पाः भवन्ति नास्ति तादृशः कश्चिदपि कालो यत्र कालत्रयेऽपि सर्वे एव परमाणवः न चलन्तीत्यर्थः । 'परमाणुपोग्गला गं भंते ! निरेया कालओ केवच्चिरं होति' परमाणुपुद्रलाः खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरं कियत्कालपर्यन्तं निरेजा:-निष्कम्पा भवन्तीति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सम्बद्ध' सर्वाम् सर्वकालमेव परमाणवो निरेजा भवन्ति, 'एवं जाव अणंतपएसिए' इसी प्रकार यावत् द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक तकके स्कन्ध जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से आवलिका के असंख्यातवें भाग तक सकम्प होता है। 'परमाणुपोग्गलाणं भंते ! सेया कालओ केवच्चिरं होति' हे भद न्त ! समस्त परमाणुपुद्गल की पृच्छा में कालकी अपेक्षा कितने काल तक सकम्प होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्रीने कहा है-'गोयमा' हे गौतम ! 'सव्वद्धं' सर्व काल तक सकम्प रहते हैं । ऐसा काई भी काल नहीं है कि जिस कालत्रय में भी समस्त ही परमाणु न चलायमान रहते हों । 'परमाणुपोग्गलाण भंते ! निरेया कालओ केवच्चिर होति' हे भदन्त ! समस्त परमाणुपुद्गल की पृच्छा में काल की अपेक्षा कितने काल तक अकम्प रहते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'सव्वद्धं समस्त काल में ही परमाणुपुद्गल अकम्प रहते हैं। લિકાના અસંખ્યાતમા ભાગ સુધી સકર્મી હોય છે. 'परमाणुपोग्गला गं भंते ! सेया कालओ केवच्चिर होति' के सावन સઘળા પરમાણુ યુદ્ગલે કાળની અપેક્ષાથી કેટલા કાળ સુધી સકમ્પ હોય छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री युछे -'गोयमा गौतम! 'सव्वद्धं' સર્વકાળ સુધી સકર્મી રહે છે, એ કેઈપણ કાળ નથી કે જે કાળવ્રયમાં પણ સઘળા પરમાણુ ચલાયમાન ન રહેતા હોય ફરીથી ગૌતમસ્વામી પ્રભુશ્રીને छ छ है-'परमाणुपोग्गले गं भंते ! निरेया कालओ केवच्चिर' होति' सा. વન્ સઘળા પુદ્ગલ પરમાણુ કાળની અપેક્ષાથી કેટલા કાળ સુધી અક૫ રહે छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमस्वामीन 38 छ -'गोयमा!' है गौतम ! 'सव्वद्धं' सघामा ५२मा पुगत २५५ २७ छे. 'एव' भ० ११३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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