SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 910
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.१३०१२ पुद्गलानां सकम्प-निष्कपत्वनि० ८९५ तथा च हे भदन्त ! परमाणुः सकम्पोऽकम्पो वेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय सेए सिय निरेए' स्यात् कदाचित् पर. माणुः सैनः-चलनादिक्रियावान् स्यात् कदाचित् निरेज:-चलनादिक्रियारहितः। 'एवं जाव अणंतपएसिए' एवं यावदनन्तमदेशिकः परमाणुपुद्गलवदेव द्विपदेशिक. स्कन्धादारभ्य अनन्तपदेशिकः स्कन्धः स्यात् सैज:-चलनत्वधर्मवान् स्यात् निरेन:-चलनवधर्मरहित इति । 'परमाणुगोग्गला ण मंते ! कि सेवा निरेया' परमाणुपुद्गलाः खलु भदन्त ! कि सैजाः निरेजा वेति प्रश्नः । भगवानाह'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सेया वि निरेया वि' सैजा:-चळना. दिमन्तोऽपि भवन्ति परमाणुपुद्गलाः, निरेजाश्चलनादि धर्मरहिता अपि भवन्तीति। 'एवं जाव अणंतपएसिया' एवं यावत् अनन्तपदेशिकाः स्कन्धा अपि सैजा अपि अकम्प-चलन क्रिया से रहित होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-गोयमा' हे गौतम! 'सिय सेए सिय निरेए' परमाणु पुद्गल कदा. चित् सकम्प होता है, कदाचित् अकम्प होता है। 'एवं जाव अणंत. पएसिए' परमाणु पुद्गल के जैसा विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध कदाचित् सकम्प होता है और कदाचित् अकम्प होता है। ___'परमाणुपोग्गलाणं भंते ! कि सेया निरेया' हे भदन्त ! समस्त परमाणुपुद्गल क्या सकंप होते हैं अथवा अकम्प होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'सेया वि निरेया वि' परमाणु पुद्गल सैज-चलनादि धर्म सहित भी होते हैं, और निरेज चलनादि धर्मरहित भी होते हैं। 'एवं जाव अणंतपएसिया' इसी प्रकार से यावत् अनन्तप्रदेशिक सहन्ध भी सैज होते हैं और निरेज भी होते हैं। 'पर. અકા ચલન ક્રિયા વિનાનું હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ स्वामीन ४ छ है-'गोयमा !' 3 गौतम 'बिय सए म्रिय निरेए' ५२मा પુદ્ગલ કોઈવાર સકમ્પ હોય છે અને કોઈવાર કમ્પ વિનાનું એટલે કે અકમ્પ डाय छे. 'एव जाव अणंतपएसिए' ५२भार पुरसना ४थन प्रमाणे ये प्रश વાળા સ્કંધથી લઈને અનંતપ્રદેશવાળા સ્કંધ સુધીના સ્કર્ધા કઈવાર સકમ્પ હોય છે. અને કઈવાર અકમ્પ-કમ્પ વિનાના પણ હોય છે. 'परमाणुगोग्गला णं भंते ! कि सेया निरेया' सगवन् सपा परमाणु પગલે શું સર્જ૫ હાય છે ? અથવા અકલ્પ હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री छ-'गोयमा ! 3 गौतम ! 'सेया वि निरेया वि' ५२मापुरता જ-ચલન વિગેરે ધર્મસહિત પણ હોય છે. અને નિરજ-ચલન વિગેરે ધર્મ विनाना डाय छे. 'एव जाव अणंतपएसिया' मा प्रमाणे यावत मनत. પ્રદેશેવાળા કંધે પશુ સેજ-ચલનક્રિયા વિગેરે ધર્મવાળા હોય છે, અને निश-यसन विगैरे घम विनाना पण डाय छे. 'परमाणुपोग्गले गं भंते । શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy