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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०२५ उ.४१०१ पुद्रलानां कृतयुग्मादित्वम् ८६१ द्विपदेशिकाः स्यात् कृतयुग्माः, 'नो तेओगा' नो योजाः, 'सिय दावरजुम्मा' स्याद् द्वापरयुग्माः, 'नो कलिओगा' नो कल्योजाः, 'विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा नो तेोगा दावरजुम्मा नो कलि भोगा' विधानादेशेन-तत्तपेग नो कृतयुग्म्माः नो योनाः द्वापरयुग्माः नो कल्योजा भवन्तीति, द्विपदेशिकाः स्कन्धाः यदासामान्यरूप से पुद्गल परमाणुप्रदेश की अपेक्षा करके भजना से चारों राशिरूप होते हैं-कदाचित् वे कृतयुग्मरूप भी होते हैं, कदाचित् योजरूप भी होते हैं कदाचित् द्वापरयुग्मरूप भी होते हैं और कदाचित् कल्योजरूप भी होते हैं। ___'विहाणादेसेणं' परन्तु विधान की अपेक्षा से एक २ परमाणु की अपेक्षा से वे न कृतयुग्नरूप होते हैं, न योजरूप होते हैं, न छापरयुग्मरूप होते हैं किन्तु कल्योजरूप ही होते हैं । 'दुप्पएसियाणं पुच्छ।' हे भदन्त ! जो विप्रदेशी स्कन्ध हैं वे क्या प्रदेशों की अपेक्षा लेकर कृतयुग्म रूप होते है ? अथवा योजरूप होते हैं ? अथवा द्वापरयुग्मरूप होते हैं ? अथवा कल्योजरूप होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! हे गौतम ! 'ओघा. देसेणं सिप कडजुम्मा' सामान्य रूप से द्विप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशों की अपेक्षा चारों रूप नहीं होते हैं-किन्तु कदाचित् वे कृतयुग्मरूप होते हैं और कदाचित् वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं । 'नो तेओगा नो कलि. काजुम्मा जाव मिय कलि भोगा' हे गौतम ! सामान्य३५थी पुगत परमार પ્રદેશની અપેક્ષા કરીને ભજનાથી ચારે રાશિ રૂપ હોય છે. કેઈવાર તેઓ કૃતયુગ્મ રૂપ પણ હોય છે. કે ઇવાર ચો જ રૂપ પણ હોય છે, કોઈવાર દ્વાપરયુગ્મ ३५ ५५ डाय छे. सन .४॥२ ४८या। ३. डाय छे. 'विहाणादेसेणं' ५२'तु विधा. નની અપેક્ષાથી એટલે કે એક એક પરમાણુની અપેક્ષાથી તેઓ કૃતયુમ રૂપ હતા નથી. જરૂર પણ હોતા નથી. અને દ્વાપરયુગ્મ રૂપ પણ લેતા નથી, પરંતુ प्रत्ये:०४ ३५ ४ डाय छे. 'दुप्प रसियाणं पुच्छा' मन्ये प्रदेशवार સ્કંધ છે; તેઓ શું પ્રદેશની અપેક્ષાથી કૃતયુમ રૂપ હોય છે? અથવા જ રૂપ હોય છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે? અથવા કાજ રૂપ य छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री ४ छ -'गोयमा !' 3 गीतमा 'ओषादेसेणं सिय कडजुम्मा' सामान्५५थी में प्रशाणा २४थे। प्रशाना અપેક્ષાએ ચારે રાશિવાળા લેતા નથી. પરંતુ કોઈવાર તેઓ કૃતયુમરાશિ ३५ सय छ, मन वार तेस। ५२युभराशि ३५ डाय छ, 'नो तेओगा नो कलिओगा' तस। याशि ३५ अथव। ४८य१०४२।शि ३५ ता नथी. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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