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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०९ पुगलानां कृतयुग्मादित्वम् ८५७ ओगे' कृतयुग्मः चतु:मदेशिकः स्कन्धो भवति नो योजो नो वा द्वापरयुग्मो 'नवा कल्योजरूप इति । 'पंचपएसिए जहा परमाणुपोग्गले' पञ्चमदेशिकः स्कन्धो यथा परमाणुपुद्गलः, पञ्चपदेशिकः स्कन्धः परमाणुपुद्गलवदेव-तथाहि-न कृतयु. ग्मो न वा श्योजो न वा द्वापरयुग्मः किन्तु कल्योजरूप एव भवतीति भावः, चतु:संख्ययाऽपहारे एकमात्रस्यैव शेषात् । 'छप्पएसिए जहा दुप्पएसिए' षट्पदेशिको यथा द्विमदेशिका, पटमदेशिक: स्कन्धो न कृतयुग्मो न वा व्योनो न करयोजोऽ. पितु द्वापरयुग्म एव भवतीत्यर्थः चतुः संख्ययाऽपहारे द्विशेषात् । 'सत्तपएसिए जहा तिप्पएसिए' सप्तप्रदेशिको यथा त्रिप्रदेशिका, सप्तप्रदेशिकः स्कन्धो न कृत. चतुष्पदेशिक स्कन्ध कृतयुग्मरूप है योजरूप नहीं है द्वापरयुग्मरूप नहीं है और न वह कल्योजरूप है। 'पंचपएसिए जहा परमाणुपोग्गले पांच प्रदेशोंवाला स्कन्ध परमाणु पुद्गल के जैसे केवल कल्पोजरूप ही होता है, कृतयुग्मरूप योजरूप अथवा द्वापरयुग्मरूप नहीं होता है। क्यों कि चार की संख्या से अपहार करने पर एक अवशिष्ट रहता है । 'छप्पएसिए जहा दुप्पएसिए' जिस प्रकार द्विप्रदे शिक स्कन्ध द्वापरयुग्मरूप कहा गया हैं उसी प्रकार से छह प्रदेशी स्कन्ध भी द्वापरयुग्मराशिरूप ही कहागया है। ज्योजरूप अथवा कृतयुग्मरूप अथवा कल्योजरूप नहीं कहा गया है। छह ६ संख्या को चार से अपहृत करने पर न तीन अवशिष्ट रहते हैं, न चार अवशिष्ट रहते हैं और न एक अवशिष्ट रहता है । दो ही अवशिष्ट रहते हैं। 3- गोयमा ! कडजुम्मे नो तेओए नो दावरजुम्मे नो कलिओगे' हे गीत ! ચાર પ્રદેશવાળે સ્કંધ કૃતયુગ્મ રૂપ છે. વ્યાજ રૂપ નથી. તે દ્વાપરયુગ્મ પણ नथी. तभत उदया। ३५ ५५ नथी. 'पंचपएसिए जहा परमाणुपोग्गले' પાંચ પ્રદેશવાળે સ્કંધ પરમાણુ યુગલ પ્રમાણે કેવળ કલ્યાજ રૂપ જ હોય છે. કૃતયુગ્મ રૂપ જ રૂપ અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોતો નથી. કેમકે ૪ ચારને અપહાર કરતાં તેમાં એક જ બાકી રહે છે. 'छप्पएसिए जहा दुप्पएसिए' २ प्रभार में प्रदेशवाण४ ५२. યુગ્મ રૂપ કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે છ પ્રદેશવાળે સ્કંધ પણ દ્વાપરયુગ્મ રાશિ રૂપ જ કહેવામાં આવેલ છે. વ્યાજ રૂપ અથવા કૃતયુગ્મરાશિ રૂપ અથવા કજ રૂપ કહેલ નથી. છ ની સંખ્યાને ચારથી અપહાર કરવાથી બેજ શેષ રહે છે. ચાર બાકી રહેતા નથી તેમ એક પણ બાકી રહેતો નથી. બેજ अये छे. तेथी तेने वापयुभराशी ३५ भानामा मावे छे. 'सत्तपएसिए जहा तिप्पएसिए' सात प्रदेशवाणे २४५ र प्रदेशमा २४ धनी भयो। भ० १०८ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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