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________________ ८५८ भगवतीस्त्रे द्रव्यार्थतया पूर्वापेक्षया-संख्ये यगुणा अधिका भान्ति । तथा-'असंखेज्जगुण कक्खडा पोग्गला दबट्टयाए असंखेज्जगुणा' असंख्यातगुणकर्कशाः पुद्गलाः द्रव्यायतया पूर्वीपेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्तीति । 'अणंतगुणकक्खडा पोग्गला दमट्टयाए अणंतगुगा' आन्तगुगर्कशाः पुद्गला द्रव्यार्थतया पूर्वापेक्षया अनन्तगुणा अधिका भान्ति । 'पएसट्ठयाए एवं चेव' प्रदेशार्थतया-प्रदेशरूपेणाऽपि-एवमेव-यया-द्रव्यार्थ तयाऽल्पबहुत्वं, प्रदेशार्थतयाऽपि तथैवावगन्तमम् 'नवरं संखेन्जगुणा'-नत्ररम्-केवलमेतदेव वैलक्षण्यं यत्-संख्येयगुणाः पूर्वापेक्षया-अधिका भवन्तीति । 'सेसं तं चे' शेषं तदेव यदेव-द्रव्यार्थतायी कथितम् दमट्टर एसट्टयाए' द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया-उभयरूपपक्षे इत्यर्थः । 'सा दवट्ठयाए संखेज्जगुणा' इनसे संख्यातगुणे अधिक द्रव्यरूप से संख्यात. गुणकर्कशस्पर्शवाले पुद्गल हैं। 'असंखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दब्य. दृयाए असंखेज्जगुणा' इनसे असंख्यातगुणे अधिक द्रव्यरूप से असं. ख्यातगुणे कर्कश स्पर्शवाले पुद्गल है। 'अणंतगुणकक्खडा पोगाला दवट्टयाए अणंतगुगा' तथा अनन्तगुणकर्क शस्पर्शले पुद्गल असंख्यातगुणे कर्क शस्पर्शवाले पुद्गलों की अपेक्षा द्रव्यरूप से अनन्तगुणे हैं। 'पएसट्टयाए एवं चेव' जिस प्रकार से इनका अल्पपहुत्व यहां द्रव्यरूप से कहा गया है, प्रदेशरूप से भी इसी प्रकार से इनका अल्पयत्व जानना चाहिये । 'नवरं संखज्जगुगकक्खडा पोग्गला पएस गए संखेजगुणा' परन्तु विशेषता ऐसी है कि-संव्यातगुण कर्कशस्पर्शवाले पुद्गल पूर्व की अपेक्षा प्रदेशार्थरूप से संख्यातगुणित हैं। 'सेतं तं चेत्र' इसके अतिरिक्त ओर सब कथन पूर्वोक्त द्रव्यरूप से कहेगये जैसा पोग्गला दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा' तनाथी याताय! पधारे द्र०५५णाथी सध्यातशुण ४ २५ वा छे. 'असंखेज्जगुणका बडा पोग्गला दब्बयाए असं खेज्जगुणा' तेनाधा मध्यात पधारे द्रव्यपाथी अस. ज्यात ४४ २५ पुगह छे. 'अणंतगुणकक्खड़ा पोगगला दबयाए अणंतगुणा' तथा सनत गुण ४४४ २५शा पुग। अस यात ॥ ४२५ ॥ पुगी ४२di द्रव्य५४थी मन त छे. 'पए. सट्टयाए एवं चेव' र प्रमाण तभनु म महुपा द्रव्यपाथी युं छे, से प्रभारी प्रदेशपथी ५ तमनु भ६५ मा सभा 'नवर संखेज्जगुणकक्खड़ा पोग्गला पएसहयाए संखेज्जगुणा' परंतु भाथनमा विशेष५५ એ છે કે–સંખ્યાત ગુણવાળા પુદ્ગલે પહેલાની અપેક્ષાએ પ્રદેશપણથી સં. यातम छे. 'सेस त चेत्र' मा थन सिवाय माडीनु तमाम प्रथन पड़ता શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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