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________________ 210 भगवतीसूत्रे दवाए' इति प्रोक्तं तदिहक्षेत्राधिकारात्-क्षेत्रस्यैव प्राधान्यात् परमाणु इयणुका ज्ञनन्ताणुकस्कन्धा अपि विशिष्टपरिणामेन-एकक्षेत्रमदेशावगाढाः आधाराधेययो. रभेदोपचारादेकत्वेन व्यपदिष्टा भवन्ति ततश्च सर्वस्तोका एकमदेशावगाडा: पुनला द्रातयेति लोकाकाशमदेशपरिमाणा एवेत्यर्थः । तथाहि-नास्ति-एता. दशः कश्चनाऽपि अकाशमदेशः य एकप्रदेशावगाहपरिमाणपरिणतानां परमावादीनामयकाशदानपरिणामेन न परिणत इति । 'संखेज्जपएसोगादा पोग्गला दबट्टयाए संखेज्जगुणा' संख्येयप्रदेशावगाढाः पुद्गला द्रच्यार्यतया संख्येयगुणा भवन्ति । अत्रापि क्षेत्रस्यैव प्राधान्यात् यहां पर 'सव्यथोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दबट्टयाए' जो ऐसा कहा गया है वह क्षेत्र के अधिकार को लेकर कहा गया है । क्यों कि यहाँ क्षेत्र की ही प्रधानता है। परमाणु द्वथणुक आदि अनन्ताणुक स्कन्ध भी विशिष्ट परिणामसे एक क्षेत्र प्रदेश में अवगाढ होते हैं। क्यों कि आधार आधेश में अभेद के उपचार से वे एक रूप से कहे जाते हैं। अतः द्रव्यरूप से एक प्रदेशावगाढ पुद्गल सर्वस्तोक हैं इसका तात्पर्य यह है कि वे लोकाकाश के प्रदेशों के बराबर ही हैं। क्योंकि ऐसा कोई भी आकाश का प्रदेश नहीं है जो प्रदेशावगाह रूप परिणाम से परिणत हुए परमाणु आदिकों को स्थानदानरूप परिणाम से परिणत न हुआ हो। 'संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दबट्टयाए संखेज्जगुणा' संख्यातप्रदेशों में अवगाही जो पुद्गल हैं वे द्रव्यरूप से संख्यातगुणें अधिक हैं यहां पर भी क्षेत्र की ही प्रधानता है। इम से ऐसे स्कन्ध मान ४२ ॥१॥ पुगत सोयी ५-मेछ। छे, महीय रे 'सव्व त्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दव्वयाए' मा प्रमाणे वामा मा०यु छे, ते ક્ષેત્રના અધિકારથી કહેલ છે. કેમકે અહીંયાં ક્ષેત્રનું જ મુખ્યપણું છે. પરમાણુ, દ્વયક, વિગેરે અનંત ગુણવાળા સ્કંધ પણ વિશેષ પ્રકારના એક ક્ષેત્ર પ્રદેશમાં અવગાઢવાળા હોય છે. કેમકે આધાર અને આધેયમાં અભેદના ઉપચારથી તેઓ એક રૂપથી કહેવાય છે. જેથી દ્રવ્યપણુથી એક પ્રદેશમાં અવગાઢ થયેલ પુદ્ગલ સૌથી થોડા છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–તેઓ લેકાકાશના પ્રદેશની બરોબર જ છે. કેમકે એ કંઈપણ આકાશને પ્રદેશ નથી કે જે એક પ્રદેશમાં અવગાહ રૂપ પરિણામથી પરિણત થયેલા પરમાણુ આદિકને स्थान आ५। ३५ परिणामथी परिश्त न या डाय 'संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दबदयाए संखेज्जगुणा' स च्यात प्रदेशमा म नापाणारे पुरखो બતાવ્યા છે, તે દ્રવ્યપણથી સંખ્યાતગણુ વધારે છે. અહીંયાં પણ ક્ષેત્રનું જ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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