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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ २०६ परमाणुपुद्गलानां संख्येयत्वादिकम् ८१३ प्रदेशिकस्कन्धानां च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा-इति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे-गौतम ! 'दसपएसिएहितो खंधेहितो संखेज्जपएसिया खंधा दबट्ठयाए बहुया' दशपदेशिकस्कन्धेभ्यः संख्यातप्रदेशिका: स्कन्धाः द्रव्यार्थतया-अधिकाः, दशपदेशिकापेक्षया पुनः संख्यातादेशिका बहवो भवन्ति, संख्यातस्थानानां बहुत्वादिति । 'एएसिणं भंते ! संखेज्ज० पुच्छा ? एतेषां खलु भदन्त ! संख्यातप्रदेशिकानामसंख्यातप्रदेशिकानां च कतरे कतरेभ्यो द्रव्यार्थतयाऽधिका वा भवन्तीति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'संखेज्जपएमिएहितो खंधे हिंतो असंखेज्जपएसिया खंधा दवट्टयाए बहुया' संख्यातप्रदेशिकेभ्यः स्कन्धे. स्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! दश प्रदेशों बाले स्कन्धों और संख्यातप्रदेशिक स्कंधों के बीच में कौन स्कन्ध किन स्कन्धों से अल्प हैं ? कौन किन से बहुत हैं ? कौन किन के बराबर हैं ? और कौन किन से विशेषाधिक है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! दसपएसिएहितो खंधेहितो संखेज्जपए. सिया खंधा दवट्टयाए बहुया' हे गौतम ! दशप्रदेशिक स्कन्धों से संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध द्रव्यरूप से अधिक है । क्यों कि संख्यातके स्थान बहुत होते हैं । 'एएसि णं भंते ! संखेज्ज पुच्छा' इस सूत्र पाठ बारा श्रोगौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है कि संख्यातप्रदेशों वाले स्कन्धों में और असंख्यात प्रदेशों वाले स्कन्धों में कौन किन से द्रव्यरूप से अधिक होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा। संखेज्जपएसिहिंतोखंधेहितो असंखेज्जपएसिया खंधा दवट्टयाए बहुया' પ્રભુશ્રીને એવું પૂછે છે કે-હે ભગવન્ દસ પ્રદેશેવાળા સ્કછે અને સંખ્યાત પ્રદેશવાળા સ્કંધમાં કયા સ્કધ કયા સ્કર્ધા કરતાં અલપ છે? કયા કયા સ્કંધથી વધારે છે? કયા ઔધે કયા સ્કંધની બરાબર છે? કયા સ્કંધ जोनाथी विशेषाधि छ १ मा प्रश्नाना उत्तरमा प्रभुश्री छे 3-'गोयमा ! दस. पएसिएहि तो खंधेहितो संखेज्जपएसिया खंधा दव्वद्वयाए बहुया' गीतम!श પ્રદેશાવાળા સ્કંધે કરતાં સંખ્યાત પ્રદેશવાળા સ્કર્ધ દ્રવ્યપણાથી અધિક છે. કેમકે સંખ્યાતના સ્થાન વધારે છે. 'एएसि गंभंते ! संखेज्ज पुच्छा' मा सूत्रपाई द्वारा श्री गौतमयामी પ્રભુશ્રીને એવું પૂછ્યું છે કે-સંખ્યાત પ્રદેશેવાળા સકધમાં અને અસંખ્યાત પ્રદેશાવાળા સકંધમાં દ્રવ્યપણાથી કેણ કેનાથી અધિક હોય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री ३ छ -'गोयमा! संखेज्जपएसेहितो खंधेहितो असंखेज्ज. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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