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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०६ परमाणुपुद्गलानां संख्येयत्वादिकम् ८०७ एकस्मिन्नाकाशप्रदेशे विद्यमानाः पुद्गलाः किं संख्याता:-असंख्याताः-अनन्ता वा भवन्तीति प्रश्नः ? भगवानाह-एवं चेव' एवमेव-परमाणुपुद्गलवदेव एकप्रदे. शावगाढाः पुद्गला मो संख्याता न वा असंख्याताः किन्तु अनन्ता एव भवन्तीति। 'एवं जाव असंखेज्जपएसोगाढा' एवम्-यावद्-असंख्येयपदेशावगादाः । एवम् -एकमदेशावगाढपुद्गलवदेव द्विपदेशिकादारभ्य-असंख्याताकाशपदेशे वर्तमाना! पुद्गला अपि नो संख्शता:-न वा-असंख्याताः किन्तु-अनन्ता भवन्ति । यावत्पदेन द्विपदेशिकादारभ्य संख्यातपदेशावगाढानां पुद्गलानां ग्रहणं भवतीति । 'एगसमय: हिइया णं भंते! एकसमयस्थितिकाः खलु भदन्त ! एकस्मिन् समय एक स्थितियेषां विद्यते ते-एकसमयस्थितिकाः, 'पोग्गला कि संखेज्जा' पुद्गलाः कि संख्याता:-असंख्याता:-अनन्ता वेति प्रश्न: ? उत्तरमाह-एवं चे' एवम्-एक प्रभुश्री कहते हैं-'एवं चेव' हे गौतम ! एक आकाशप्रदेश में अवस्थित पुद्गल परमाणुपुद्गल के जैसे न संख्यात हैं, न असंख्यात हैं किन्तु अनन्त ही हैं। 'एवं जाव असंखेज्जपएसोगाढा' इसी प्रकार से यावत् विप्रदेशावगाढस्कंध से लेकर आकाश के असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ जो पुद्गल हैं वे भी अनन्त हैं संख्यात अथवा असंख्यात नहीं हैं। यहां यावत्पद से द्विप्रदेशावगाढ स्कन्ध से लेकर संख्यात प्रदेशावगाढ पुद्गलों का ग्रहण हुआ है। अब श्रीगौतमस्वामी प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं-'एगसमयट्टिया णं भंते ! पोग्गला कि संखेज्जा.' 'हे भदन्त ! एक समय की स्थितिवाले पुद्गल क्या संख्यात हैं ? अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'एवं चेव' एक શું સંખ્યાત છે? અથવા અસંખ્યાત છે? અથવા અનંત છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री गौतभस्वाभान छ -'एव चेव' हे गौतम! से આકાશ પ્રદેશમાં રહેલા પુદ્ગલે પરમાણુ પુદ્ગલની જેમ સંખ્યાત નથી असभ्यात पण नथी ५२'तुमनत छ. 'एव जाव असंखेजपएसोगाढा' से प्रभारी થાવત્ બે પ્રદેશવાળા સ્કંધથી લઈને આકાશના અસંખ્યાત પ્રદેશમાં રહેલા જે યુગલે છે, તેઓ પણ અનંત છે. સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત નથી. અહીંયા યાત્પદથી બે પ્રદેશવાળા સ્કંધથી લઈને સંખ્યાત પ્રદેશોમાં અવગાઢ થયેલા પુદ્ગલે ગ્રહણ કરાયા છે. 6 श्री गौतमत्वामी प्रभुश्रीन से पूछे छे ४-'एगसमयट्रिइयाणं भंते ! पोग्गला कि संखेज्जा' भगवन् मे समयनी स्थितिवाणा पुगिसो . સંખ્યાત છે? અથવા અસંખ્યાત છે? અથવા અનંત છે? આ પ્રશ્નના ઉત્ત २भ प्रभुश्री छ -'एव' चेव' में प्रदेशमा मा पुगत प्रमाण શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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