SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 774
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका का श०२५ उ.४ सू०२ जीवादि २६ द्वाराणां कृतयुग्मादित्वम् ७५९ द्विशेषाऽभावात् 'कलिओगा' कल्योजाः, चतुष्कापहारे-एकशेषसंभवादिति । 'एवं जाब सिद्धा' एवम्-नैरयिकवदेव भवनपतित आरभ्य सिद्धपर्यन्तजीवाः द्वन्यार्थतया-श्रोधादेशेन स्यात्-कृतयुग्मादिरूपाः। विधानादेशेन तु-केवलं कल्योजा एवेति भावः । 'द्रव्यार्थतया जीवादयः कथिताः, अथ प्रदेशार्थतया कथ्यन्ते 'जीवे भंते! इत्यादि । 'जीवे णं भंते ! पएसट्टयाए किं कडजुम्मे ? पुच्छा?' जोकः खलु भदन्त ! प्रदेशार्थतया कि कृतयुग्म इति पृच्छा हे भदन्त ! प्रदेशार्थतया जीवः किं कृत. युग्म इति पृच्छा ? हे भदन्त ! प्रदेशार्थतया जीवः किं कृतयुग्मः योनः द्वापरयुग्मः कल्योजो वेति प्रश्नः ? भगवानाह-गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जीवपएसे पडुच्च कडजुम्मे' जीवपदेशान् प्रतीत्य कृतयुग्मो जीवः जीवपदे. के अभाव से द्वापरयुग्मरूपता नहीं आती है अतः ‘कलिभोगा' वे कल्पोजरूप ही होते हैं। 'एवं जाव मिद्धा' नैयिक के कथन जैसे असुरकुमार देवों से लेकर सिद्धपर्यन्त जीय द्रव्यरूप से सामान्यतः कदाचित् कृतयुग्म भी होते हैं, कदाचित् योजरूम भी होते हैं, कदाचित् द्वापरयुग्म रूप भी होते हैं और कदाचित् कल्यो जरूप भी होते हैं। तथा एक एक की अपेक्षा से वे कल्पोजरूप ही होते हैं। इस प्रकार द्रव्यरूप से जीवादिकों का कथन करके अब सूत्रकार प्रदेश रूप से उनका कथन करते हैं-'जीवे गंभंते ! परसट्टयाए कि कडजुम्मे पुच्छा' हे परम दयालु भदन्त ! प्रदेशरूप से एक जीव क्या कृतयुग्मरूप है ? अथवा योजरूप है ? अथवा द्वापरयुग्मरूप है ? अथवा कल्योजरूप है ? श्री गौतमस्वामी के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु श्री उनसे करते हैं-'गोयमा ! जीवपएसे पडुच्च कडजुम्मे' हे गौतम जीव प्रदेशों ત્રણ શેષ રહેતા નથી. અને બે શેષના અભાવથી દ્વાપરયુગ્મપણું આવતું નથી. 'एवं जाव सिद्धा' नैयिाना ४थन प्रमाणे असुमार वाथी सन सिद्ध સુધીના જીવ દ્રવ્યપણથી સામાન્યતઃ કોઈવાર કૃતયુગ્મ પણ હોય છે, કઈ વાર વ્યાજ રૂપ પણ હોય છે, કઈવાર દ્વાપરયુગ્મ રૂપ પણ હોય છે. અને કોઈ વાર કલ્યાજ રૂપ પણ હોય છે. તથા એક એકની અપેક્ષાથી તેઓ કલ્યાજ રૂપ જ હોય છે. આ રીતે દ્રવ્ય રૂપથી જીવાદિકે નું કથન કરીને હવે સૂત્રકાર प्रवेशपथी तेनु ४थन ४२ छे. 'जीवे णं भंते ! पएसट्टयाए कि कडजुम्मे पुच्छा' ७ ५२मयासु भगवन् प्रश५४ाथी से १ शुकृतयुम ३५ छ। જ રૂપ છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ છે ? અથવા કાજ રૂપ છે? श्री गौतमस्वामीना ॥ प्रशन उत्तर भारत प्रसुश्री छे 'गोयमा! जीवपएसे पडुच्च करजुम्मे' हे गौतम ! प्रशानी अपेक्षाथी मे १ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy