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________________ ६५४ भगवतीसूत्रे कल्योजस्वरूपाणि । प्रत्येकापेक्षया एकैकमाश्रित्य तु नो कृतयुग्मानि नो व्योजस्वरूपाणि न वा द्वापरयुग्मानि किन्तु-कल्योजस्वरूपाण्येव भवन्तीति भावः । ___ अर्थतेषामेव प्रदेशार्थचिन्तां कुर्वनाह-'परिमंडले णं भंते' इत्यादि। 'परिमंडले णं भंते ! संठाणे' परिमण्डलं खलु भदन्त । संस्थानम् 'पएसट्टयाए कि कडजुम्मे पुच्छा' प्रदेशार्थतया परिमण्डलसंस्थानम् प्रदेशार्थविचारेण विंशत्यादिषु क्षेत्रप्रदेशेषु ये प्रदेशाः परिमण्डलसंस्थाननिष्पादकाः सन्ति तदपेक्षया इत्यर्थः, किं कृतयुग्ममिति पृच्छा ? किं वा योजम्, अथवा-द्वापरयुग्मम्, कल्योजं वाइति पृच्छा-प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय कडजुम्मे' स्यात् कृतयुग्मम् प्रदेशार्थतया परिमण्डलसंस्थान कदाचित् कृत. युग्मरूपं स्यादिति। 'सिय तेओगे' स्याव-कदाचित् योजम्-योजरूपं स्यादिति। अपेक्षा से-एक एक को आश्रित करके वे न कृतयुग्मरूप होते हैं, न यो जरूप होते हैं, न द्वापरयुग्मरूप होते हैं किन्तु कल्पोजरूप ही होते हैं। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'परिमंडले गभंते ! संठाणे पएस. याए कि कडजुम्मे पुच्छ।' हे भदन्त ! परिमंडल संस्थान प्रदेशों की अपेक्षा से विंशति आदि क्षेत्र प्रदेशों में जो परिमंडल संस्थान के निष्पादक प्रदेश हैं उनकी अपेक्षा से-क्या कृतयुग्मरूप हैं ? अथवा व्योजरूप हैं ? अथवा द्वापर युग्मरूप हैं ? अथवा कल्योज रूप हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! सिय कडजुम्मे, सिय तेभोगे, सिय दावरजुम्मे, सिय कलि भोए एवं जाव आयए' हे गौतम ! प्रदेशों की अपेक्षा से परिमंडल संस्थान कदाचित् कृतयुग्मरूप है, कदाचित् योजरूप है, कदाचित् द्वाप. रयुग्म रूप है कदाचित् कल्योजरूप है। इसी प्रकार से यावत् आयत આશ્રય કરીને તેઓ કૃત યુગ્મરૂપ લેતા નથી. જરૂપ હેતા નથી. દ્વાપરયુગ્મ રૂપ પણ લેતા નથી, પરંતુ કલ્યાજ રૂપ જ હોય છે. वे गीतमस्वामी प्रभुश्री ने मे पूछे छे ,-'परिमंडले णं भंते! संठाणे पएसटुयाए कि कडजुम्मे पुच्छा' 3 मावन् परिभ७३ सयान महेशानी અપેક્ષાથી વિંશતિ વિગેરે ક્ષેત્ર પ્રદેશમાં જે પરિમંડલ સંસ્થાનને નિષ્પાદક પ્રદેશ છે, તેની અપેક્ષાથી શું કૃતયુગ્મ રૂપ છે? અથવા જરૂપ છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂ૫ છે? અથવા કાજ રૂપ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે'गोयमा! सिय कडजुम्मे, सिय, तेओगे, सिय दावरजुम्मे, सिय कलिओए एवं जाव आयए' 3 गौतम ! प्रशानी अपेक्षाथी परिभस संस्थान पर કૃતયુગ્મ રૂપ હોય છે, કેઈવાર જ રૂપ હોય છે, કેઈ વાર દ્વાપર યુગ્મ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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