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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ १०३ प्रदेशतोऽवगाहतश्च संस्थाननि० ६३७ चउप्पएसिए चउपएसोगाढे पन्नत्ते' तत् जघन्येन चतुःषदेशिक चतुःप्रदेशावगाढ ० चेति अस्य स्थापना आ.नं. १० अकस्योपरि एकप्रदेशो दीयते, इत्येवं 0 चत्वारः प्रदेशा भवन्तीति । 'उकोसेणं अगंतपएसिए तं चेव' उक. ० ० पेंणाऽनन्तमदेशिकं तथा तदेव असंख्यातमदेशावगाढं चेत्यर्थः। चउरंसे आ. नं. १० णं भंते ! संठाणे कर पएसिए पुच्छा' चतुरखं खलु भदन्त ! संस्थानं कति प्रदेशिकमिति पृच्छा कति प्रदेशावगाढं चेति पृच्छया गृह्यते इति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चउरंसे संठाणे से दुविहे पन्नत्ते' 'चतुरस्रं संस्थानं तद् द्विविधं प्रज्ञप्तम् 'भेदो जहेच वट्टस्स' भेदो-विशेषो यथैव वृत्तस्य, एवं असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ होता है । 'तत्य णं जे से जुम्माए. सिए से जहन्ने णं च उपएसिए च उपएसोगाढे' तथा जो युम प्रदेशिक घनवृत्त है वह जघन्य से चार प्रदेशों वाला होता है और आकाश के चार प्रदेशों में अवगाढ होता है। इसका आकार सं. टीकामें आ० नं. १० में दिया है। यहां एक के ऊपर एक प्रदेश दिया जाता है। इस प्रकार से चार प्रदेश होते हैं। 'उकोसेणं अगंत. पएसिए तं चे' तथा उत्कृष्ट से वह अनन्त प्रदेशों वाला है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में उसका अवगाढ है। 'चउरंसे णं भंते ! संठाणे कह पएसिए पुच्छ।' इस सूत्रद्वारा श्रीगौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! चतुरस्त्रसंस्थान कितने प्रदेशों वाला है ? और कितने प्रदेशों में उसका अवगाढ होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! चउरंसे संठाणे दुविहे पन्नत्त' हे गौतम! चतुरस्रसंस्थान दो प्रकार का कहा गया है। 'भेदो जहेव वस्स' इसके भेद वृत्तसंस्थान के जैसे गाढे' तथा २ युभ प्रश वाणु पनवृत्त संस्थान छेते ४५-५थी या२ प्रदेश વાળું હોય છે. અને આકાશના ચાર પ્રદેશોમાં તેને અવગાઢ હોય છે. તેને આકાર સં. ટીકામાં આ નં. ૧૦ થી બતાવવામાં આવેલ છે. આમાં એક ઉપર એક प्रदेश मा छे. माशते यार प्रदेश जय छे. 'उकोसेणं अणंतपएसिए तं चेव' तथा टया ते मनात प्रशाणु डाय छे. सने भाशना असण्यात प्रदेशमा तन मसा डाय छे. 'चउरंसे ण ! भंते ! संठाणे कइपएसिए पुच्छा' । સૂત્ર દ્વારા ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે-હે ભગવન્! ચતુરસ સંસ્થાના કેટલા પ્રદેશ વાળું છે? અને કેટલા પ્રદેશમાં તેને અવગાઢ થાય છે? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु श्री ४३ छ । 'गोयमा ! च उरसे सठाणे दुविहे पन्नत्ते' गौतम यतुरख स्थान में प्रा२र्नु त छ. 'भेदो जहेव वदृस्स' तना ભેદ વૃત્ત સંસ્થાનમાં કહ્યા પ્રમાણે ઘન ચતુરસ્ત્ર અને પ્રતરચતુરસ્ત્ર એ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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