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________________ भगवतीस्त्रे कायिकगतौ च गमनागमने कुर्यादिति एवं णवसु गमएसु आउकाइयठिई जाणि. यया' एवं नवस्त्रपि गमकेषु स्थितिस्तु अकायिकस्थितिः ज्ञातव्या, एवम्-उपरोतमदर्शितपकारेण अकायिकस्य जीवस्य पृथिवीकायिके उत्पित्सोः स्थिति २, कायस्थिति प्रत्येकस्मिन् गम के जानीयाद्-वदेदिति नवगमान्तोऽप्कायिकजीवविचारः ९ इति अप्कायप्रकरणं द्वितीयम् २ । अकायिकेभ्य आगत्य पृथिव्यापित्सो जीवस्य उत्पादादिकं निरूप्य तेजस्कायिकेश्य आगत्य पृथिवीकापिके उस्पित्सोनीवस्य उत्पादादिकं वर्णयितुमाह-'जइ' इत्यादि, 'जइ तेउकाइए हितो उत्रज्जति' यदि तेजस्कायिकेभ्य आगत्य पृथिवीकायिक उत्पद्यते इत्यादि प्रश्नोत्तर विषया 'ते उक्काइयाण वि एस धेव वत्तव्यया' तेनस्कायिकानामपि एक वक्तव्यता, हे भवन्त ! यदि-कदाचित है, एवं णवसु वि गमएसु आउकाइयठिई जाणियव्या' इस प्रकार नौ ही गमों में अप्कायिक की स्थिति जाननी चाहिये, अर्थात् पृथिवीका. यिकमें उत्पन्न होने योग्य अकायिक जीव की स्थिति-कायस्थितिप्रत्येक गम में कहनी चाहिये। इस प्रकार से यह नव गमान्त वाला अपकायिक जीव का विचार यहां तक किया गया, अब सूत्रकार तेजस्कायिक से आकर के पृथिवी में उत्पन्न होने के योग्य जीके उत्पाद आदि का वर्णन करते हैं-'जइ तेउक्काइएहितो उववति' हे भदन्त ! यदि जीव तेजस्कायिकों से आकर के पृथिवीकायिक में उत्पन्न होता है तो इस विषय में प्रश्न और उत्तर आदि रूप कथन पूर्वोक्त जैसा ही जानना चाहिये, अर्थात् जैसी पक्तव्यता अप्कायिक के प्रकरण में कही गई है-वैसी ही वक्तव्यता एसु आउकाइयठिई जाणियदा' से शत नवे आमामा यिनी स्थिति જાણવી જોઈએ, અર્થાત્ પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય અપ્રકાયિક જીવની સ્થિતિ-કાયસ્થિતિ દરેક ગામમાં કહેવી જોઈએ. આ પ્રમાણેના આ નવ ગમેવાળા અVાયિક જીવન સંબંધનું કથન અહિ સુધીમાં કહેવામાં આવેલ છે. હવે સૂત્રકાર તેજસ્કાયિકથી આવીને પૃથ્વીકાયમાં ઉત્પન્ન याने योग्य न पा विणेनुन छ.-जइ तेउकाइएहितो उष. बजति' पन्ने । १ ते४२४६५४५६माथी मावीन वीयि. કમાં ઉત્પન થાય છે, તે આ સંબંધમાં પ્રશ્ન અને ઉત્તર રૂપ કથન પહેલા કહ્યા પ્રમાજ છે. તેમ સમજવું અર્થાત્ જે પ્રમાણેનું કથન અપકાયિકના પ્રકરણમાં કહેલ છે, તે જ રીતનું કથન અહિયાં તેજરકાયિકેના સંબંધનું શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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