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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ. २ सू०४ स्थितास्थितद्रव्यग्रहणनिरूपणम् ५८५ भावतोऽपि गृह्णाति, अत्र यावत्पदेन द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतश्च ? ग्रहणं भवति, 'जाई' दवाई दaa auड ताई कि एएसियाई गेव्ह दुपए सियाई गेण्ड' यानि द्रव्याणि कार्मणशरीरी द्रव्यतो गृह्णाति तानि किम् एकमदेशिकानि गृह्णाति, द्विपदेशिकानि वा गृह्णाति ? त्रिपदेशिकादारभ्य किमनन्तप्रदेशिकानि गृह्णाति इति प्रश्नः । उत्तरमाह ' एवं जह' इत्यादि, 'एवं जहा भातापदे' एवं यावत् भाषापदे यथा मापनासूत्रस्य एकादशे भाषापदे कथितं तथैवेापि वक्तव्यम्, तच्च 'ति पएसिया' गिहई जान अनंतपरसियाई गिors' इत्यादि त्रिपदेशिकानि को ग्रहण करता है, क्षेत्र से भी वह पुद्गलद्रव्यों को ग्रहण करता है, काल से भी वह पुद्गलद्रव्यों को ग्रहण करता है' इस कथन का संग्रह किया गया है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जाइ दव्बाई दव्बओ गेह, ताई किं एगपएसियाई गेव्हह, दुपएसियाई गेव्ह३' जिन द्रव्यों को कार्मण शरीरी द्रव्य की अपेक्षा ग्रहण करता है तो क्या वह एक प्रदेशवाले उन द्रव्यों को ग्रहण करता है ? अथवा दो प्रदेशों वाले उन द्रव्यों को वह ग्रहण करता है ? अथवा तीन प्रदेशों से लेकर अनन्त प्रदेशोवाले उन द्रव्यों को वह ग्रहण करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' एवं जहा भासापदे जाव आणुपुवि गेव्हइ नो अणाणुपुवि does' हे गौतम! इस सम्बन्ध में जैसा कथन प्रज्ञापना सूत्र के ११वें भाषापद में किया गया है उसी प्रकार से यहां पर भी कहना चाहिये । जो इस प्रकार से है - 'तिपएसियाई गिरहद्द' वह तीन प्रदेशों वाले पुद्गलस्कन्धों को ग्रहण करता है 'जाव अनंतपएसियाई गिव्ह' यावत् પુદ્ગલ દ્રબ્યાને ગ્રહણ કરે છે, ક્ષેત્રથી પણ તે પુદ્ગલ દ્રવ્યોને ગ્રહણ કરે છે, કાળથી પણ તે પુદ્ગલ દ્રવ્યેાને ગ્રહણ કરે છે. આ કથનના સગ્રહ થયેલ છે. हवे गौतमस्वामी प्रसुने मे पूछे छे है- 'जाई दव्वाई' दव्व ओ गेव्हइ ताई कि एगपएसियाइ' गेण्हइ दुप्पएसियाई गेण्ड' ने द्रव्याने अर्भशु शरी રવાળા દ્રવ્યની અપેક્ષાથી ગ્રહણ કરે છે, તે શું તે એક પ્રદેશવાળા તે દ્રવ્યાને ગ્રહણું કરે છે? અથવા એ પ્રદેશવાળા તે દ્રવ્યાને ગ્રહણ કરે છે ? અથવા ત્રણ પ્રદેશથી લઈને અનંત પ્રદેશવાળા તે દ્રવ્યોને તે ગ્રહણ કરે છે ? આ प्रश्नना उत्तरमां प्रलु हे छे है- एवं जहा भासापदे जाव आणुपुवि गेव्हड् नो अापुवि' गेors' हे गौतम! आ संबंधमां ने प्रथन प्रज्ञापना સૂત્રના ૧૧ અગીયારમાં ભાષાપદમાં કહેલ છે, એજ પ્રમાણેનુ કથન અહિયાં याशु समन्वु लेहो ? या प्रमाणे छे. - ' तिप्पएसियाई गेण्हइ' ते શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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