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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.२ सू०४ स्थितास्थितद्रव्यग्रहणनिरूपणम् ५७९ इंपि गेण्हइ अठियाइपि गेण्हइ' स्थितान्यपि द्रव्याणि गृहणाति जीव औदारिकशरीर निष्पत्तये, तथा अस्थितान्यपि द्रव्याणि औदारिकशरीरनिष्पादनाय गृहणातीति । 'ताई भंते' यानि स्थितास्थितद्रव्याणि गृहूगाति तानि भदन्त ! 'किं दबो. गेण्हई' किं द्रव्यतः प्रदेशरूपद्रव्यमाश्रित्य गृह्णाति 'खेत्तमो गेहई क्षेत्रतः प्रदे. शावगाढरूपक्षेत्रमाश्रित्य गृणाति, 'कालओ गेण्हई' कालतः स्थितिरूपकालमा श्रित्य गृह्णाति ? 'भाषओ गेण्हई' भावतो वर्णादिरूप भावमाश्रित्य गृहणाति इति पश्नः । भगवानाह-गोथमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'दवो वि गेण्हइ' द्रव्यनोऽपि स्थिनास्थितानि द्रव्याणि गृह्णाति जीव औदारिकशरीरनिष्पत्त्यर्थम्, 'गोयमा! ठियाई विगेण्हह, अठियाइं वि गेण्हह' हे गौतम! वह औदा. रिक शरीर की निष्पत्ति के लिए स्थित द्रव्यों को भी ग्रहण करता है और अस्थित द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। अब गौतम पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ताई भंते ! कि वो गेण्हह, खेत्तभोगेण्हह, कालओ गेण्हद, भावओ गेण्हह' हे भदन्त ! जिन स्थित और अस्थित द्रव्यों को यह जीव ग्रहण करता है उन द्रव्यों को क्या वह प्रदेश रूप द्रव्य को आश्रित करके ग्रहण करता है ? अथवा प्रदेशावगढ रूप क्षेत्र को आश्रित करके ग्रहण करता है ? अथवा स्थितरूप को आश्रित करके ग्रहण करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! दवाओ वि गेहद खेत्तओ वि गेण्हह, कालो वि गेण्हह भावो वि गेण्हई' हे गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा भी स्थित अस्थित द्रव्यों को वह जीव १ प्रश्न उत्तरमा प्रभु छ है- 'गोयमा ! ठियाई पि गेण्हइ, अठि याई पि गेण्हइ' हे गौतम ! ते मोहार शरीरी प्राति भाटे स्थित ને પણ ગ્રહણ કરે છે, અને અસ્થિત દ્રવ્યોને પણ ગ્રહણ કરે છે. गीतमयामी प्रभुने शथी पूछे छे ,-'ताई भंते ! किं दव्वओ गेहइ, खेत्तओ गेण्इइ कालओ गेव्हा भारओ गेहइ' 8 सन् २ स्थित અને અસ્થિત દ્રવ્યને આ જીવ ગ્રહણ કરે છે, તે દ્રવ્યને શું તે પ્રદેશરૂપ દ્રવ્યને આશ્રય કરીને ગ્રહણ કરે છે? અથવા પ્રદેશાવગાઢ રૂપ ક્ષેત્રને આશ્રય કરીને ગ્રહણ કરે છે? અથા પિતરૂપ કાળને આશ્રય કરીને ગ્રહણ કરે છે? અથવા વર્ણ વિગેરે રૂપ ભાવને આશ્રય કરીને ગ્રહણ કરે છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु ४ छे ४-'गोयमा ! दवओ वि गेहद खत्तओ वि गेहइ कालो वि गेण्हइ भावओ वि रोहइ' गौतम ! द्र०यनी अपेक्षाथी ५ સિથત અને અસ્થિત દ્રવ્યને તે જીવ ઔદરિક શરીરની પ્રાપ્તિ માટે ગ્રહણ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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