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________________ भगवतीसत्रे 'पेन्नियतेयम्' वैक्रियतैजसकार्मणं शरीरम् 'सोईदियं जात्र फासिंदियं आणापाणुतं च जाव निवत्तयंति' श्रोत्रेन्द्रियं यावत् स्पर्शनेन्द्रियमानपाणं च यावत् मनोयोगादियोगत्रिकं इवासोच्छ्रासं च निर्वर्त्तयन्ति आहृतान् अजीवपदार्थान् चैक्रियादिशरीररूपेणेन्द्रियरूपेण योगरूपेण झासोच्छवासादिरूपेण न संपादयन्तीत्यर्थः 'से तेणणं गोयमा ! एवं बुच्च तचेनार्थेन हे गौतम! एवमुच्यते यन् नैरयिका अजीवद्रव्याणि परिभोगाय गृह्णन्ति न तु अजीवद्रव्याणि नैरविकान परिभोगाय गृह्णन्ति, ' एवं जान बेमानिया' एवम् - नैरयिकवदेव यावद्वैमानिका नैरविक्रयदेव मवनपतित आरभ्य वैमानिकान्तदण्ड केष्वपि हयमेव व्यवस्था ज्ञातव्ये स्वर्थः 'नवरं सरीरइंदियजोगा माणियन्त्रा जस्त जे अस्थि' नवरं शरीरेन्द्रिययोगा परियाइत्ता' अजीब द्रव्यों को ग्रहण करके 'वेषयतेयगकम्मगं' उन्हें वैक्रिय शरीर रूप से, तेजस शरीर रूप से, कार्मण शरीर रूप से 'सोइंदियं जाव फासिंदिय आणापाणुत्तं च जाव निव्वतयति' श्रोत्रे न्द्रिय रूप से यावत् स्पर्शनेन्द्रिय रूप से और श्वासोच्छ्वास आदि रूप से परिणमाते हैं । 'आहृन (आहार रूप में ग्रहण किये हुवे ) अजीव पदार्थों को वे वैक्रियादि शरीर रूप से, इन्द्रिय रूप से और श्वासोच्छ्रवासादिरूप से संपादित करते हैं- 'से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ' इस कारण हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि नैरधिक अजीव द्रव्यों को परिभोग के लिये ग्रहण करते हैं अजीव द्रव्य नैरयिकों को परिभोग के लिये ग्रहण नहीं करते हैं । 'एवं जाव वेमाणिया' इसी प्रकार का कथन यावत् भवनपति से लेकर वैमानिक तक के दण्डकों में भी जानना चाहिये। 'नवरं सरीरइ दियजोगा भणियन्त्रा जस्स जे अस्थि' परन्तु ५७० श्रयुरीने 'बेव्त्रियतेयगकम्मगं तेने वैडिय पाथी, तैक्स शरीर ३५थी अभषु शरीर ३५थी 'सोइदियं जाव निव्वत्तयंति' श्रोत्रेद्रिय पशुाथी यावत् સ્પર્શનેન્દ્રિય પણાથી અને શ્વાસે શ્ર્વાસ વિગેરે રૂપથી પરિણુમાવે છે. માતૃત આહાર પણાથી ગ્રહણુ કરેલા અજીવ પદાર્થોને તેઓ વૈક્રિય વિગેરે શરીર પણાથી, ઇન્દ્રિય પશુાથી, ચેાગ રૂપથી, અને શ્વાસે વાસાદિ રૂપથી—પરિણ भावे छे. सौंपाइन ४रै छे. 'से तेणट्टेणं गोयमा ! एव' वुच्चइ' ते ४२५ थी હૈ ગૌતમ ! મેં એવું કહ્યું છે કે-નાકીય અજીવદ્રવ્યેાને ઉપભેાગ માટે ચડણ કરે છે. અજીવદ્રવ્ય નયિકાને ઉપભેગ માટે ગ્રહણ કરતાં નથી. जाव बेमाणिया' मा प्रभाषेनु अथन यावत् लवनयतिथी साधने वैमानिक सुधीना मां पशु उहेवु' लेहो 'नवर' सरीरइ दियजोगा भाणियन्त्रा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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