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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.१९०५ प्रकारान्तरेण योगनिरूपणम् ५५१ पूर्वोक्तयोगस्यैव अल्पबहुत्व प्रकारान्तरेण वक्ति 'एयस्स णं भंते' इत्यादि। 'एयरस णं भंते !' एतस्य-पूर्वपतिपादितस्य योगस्य खलु भदन्न ! 'पन्नरसविहस्स' पञ्चदशविधस्य पञ्चदशमकारकस्येत्यर्थः योगस्य 'जहन्नुकोसगरस' जघन्योत्कृष्टस्य 'कयरे कयरहितो जाव विसेसाहिया वा' कतरे कतरेभ्यो पावदिशेपाधिका वा अत्र यावत्पदेन अल्पा वा बहुका वा तुल्यावेत्येतेषां संग्रहः, तथा च हे भदन्त ! जघन्यस्योत्कृष्टस्प च योगस्य कस्यापेक्षया कस्याल्पत्वं बहुत्वं तुल्य त्वं विशेषाधिकरवं वा भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सम्वत्योधे कम्मगसरीरस्स जहन्नए जोए१' सर्वस्तोकः कार्मण. शरीरस्य जघन्यो योगः कार्मणशरीरस्य जघन्यो योगः सर्वापेक्षया अल्पीयानित्यर्थः 'ओरालियमीसगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे२' औदारिकमिश्रशरीरस्य जघन्यो योगोऽसंख्येयगुणोऽधिको भवति कार्मणशरीरगतजघन्ययोगापेक्षया अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'एघस्स णं भंते !' हे भदन्त ! इस पूर्व प्रतिपादित १५ पन्द्रह प्रकार के योग में से जो कि अनेक जीवों के आश्रय से जघन्य और उत्कृष्ट कहा गया है कौन योग किस योगकी अपेक्षा से यावत् विशेषाधिक है ? यहां यावत्पद से 'अल्पा वा बहुका वा तुल्या वा' इन पदों का संग्रह हुआ है । तथा च-इन १५ पन्द्रह प्रकार के योगों में से कौन योग किनकी अपेक्षा अल्प हैं ? कौन योग किनसे बहुत हैं ? कौन योग किनके तुल्य है ? और कौन योग विशेषाधिक है ? इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'सव्वत्थोवे कम्मगसरीरस्स जहन्नए जोए' सब से कम कार्मण शरीर का जघन्य योग है। 'ओरालियमीसगस्स जहन्नए जोए हवे गीतमस्वामी प्रभुने मे पूछे छे है-'एयरस णं भंते !' 3 मापन આ પહેલાં કહેલ ૧૫ પંદર પ્રકારના ચેગમાંથી કે જે અનેક જીના આશ્રયથી જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટક હ્યો છે, તે તે કયો યાગ કયા રોગ કરતાં યાવત્ વિશેષાધિક छ. मलियां यावर५४थी 'अल्पा वा. बहुका वा, तुल्या वा' मा ५होन। श्रथये। છે. તથા આ પંદર પ્રકારના યેગો પૈકી કયે યેનકોનાથી અલ્પ છે? કો ગ કોનાથી અધિક છે? ક ગ કોની તુલ્ય છે અને કયો યોગ વિશેષાધિક છે? આ प्रश्रना उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीन छ-'गोयमा ! गौतम ! 'सव्वत्थोवे कम्मगसरीरस्स जहन्नए जोए' साथी भ. ४ाम शरी२ने। धन्य यो छे. 'ओरालियमीसगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे' तेना ४२तi मोहरि मिश्र शरी. २। धन्य योग अध्यात छे. 'वेउब्वियमीसगस्स जहन्नए जोए असं. खेन्जगुणे तेना ४२ता वष्टिय भिनाजन्य योग मध्यात गो। छे. ओरा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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