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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका शः२५ उ.१ सू०२ संसारसमापन्नकजीवनिरूपणम् ५२७ बहुत्वं वक्तव्यमिति तत् पस्तावात् लेश्याल्पबहत्वप्रकरणम युक्तं तत एव लेश्याल्पबहुत्वपकरणानन्तर संसारसमापन्नजीवान् तदयोगाल्पबहुत्वं च प्ररूपयभाह-'कइविहा णं भंते इत्यादि। मूलम्-कइविहाणं भंते! संसारसमावनगा जीवा पन्नता? गोयमा! चोदसविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहासुहुमअपजत्तगा१, सुहमपजत्तगा२, बायरअपज्जत्तगा३, बायरपजत्तगाट, बेईदिया अपज्जत्तगा५, बेईदिया पजत्तगाद, एवं तेइंदिया८, एवं चउरिदिया१०, असन्निपंचिंदिया अपजत्तगा११, असन्निपंचिंदिया पजत्तगा १२, सन्निपंचिंदिया अपजत्तगा १३, सन्निपंचिंदिया पजत्तगा १४॥सू०२॥ छाया-कतिविधाः खलु भदन्त ! संसारसमापन्नका जीवाः प्रज्ञता ? गौतम ! चतुर्दश विधाः संसारसमापन्नका जीवाः प्रज्ञप्ताः तथा सूक्ष्मापर्याप्तकाः १, सूक्ष्मपर्याप्तकाः२, बादरापर्याप्तकाः३, बादरपर्याप्तकाः ४, द्वीन्द्रिया अपर्याप्तकाः५, द्वीन्द्रियाः पर्याप्तकाः६, एवं त्रीन्द्रियाः ८, एवं चतुरिन्द्रियाः १०, असंज्ञिपञ्चेन्द्रिया अपर्याप्तकाः ११, असंज्ञिपञ्चेन्द्रियाः पर्याप्तकाः १२, संज्ञिपश्चेन्द्रिया अपर्याप्तकाः १३, संज्ञिपञ्चेन्द्रियाः पर्याप्तकाः ॥१४मू०२॥ बहुत्व कहना है । इसलिये इस योग के सम्बन्ध को लेकर लेश्याओं का अल्पबहुत्व का जो प्रकरण है वह भी कह दिया है। अब सूत्रकार इसीसे लेश्याओं के अल्प बहत्व प्रकरण के कथन करने के बाद संसारी जीवों की और उनके योगों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा करते हैं-'कइविहाण भंते ! संसारसमावनगा जीवा पन्नत्ता' ३० બહતપણુ કહેવાનું છે, તે કારણથી આ ચેનના સંબન્ધને લઈને વેશ્યાઓના અલ્પબહુવનું જે પ્રકરણ છે, તે પણ કહ્યું છે. હવે સૂત્રકાર છએ વેશ્યાઓના અ૯પ અને બહુ પણ સંબંધી પ્રકરણના કથન પછી સંસારી જીના અને તેમના રોગોના અલ્પ બહુપણાનું નિરૂપણું अरे छ. 'कइविहा णं भंते ! संसारसमावनगा जीवा पन्नता' त्याह શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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