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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २४ सू०१ सौधर्म देवोत्पत्तिनिरूपणम् ૪૧ एतावन्तं कालम् असंख्यातवर्षायुष्क पञ्चेन्द्रियतिर्यग्गतिं देवगतिं च सेवेत तथा एतावन्तमेत्र कालं पञ्चेन्द्रियतिर्यगती देवगत च गमनागमने कुर्यादिति तृतीयो - गमः ३ | 'सो चैत्र अपणा जहन्नकालद्विइओ जाओ' स एवासंख्यातवर्षायुष्क संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक एवं आत्मना स्वयं जघन्यकालस्थितिका समुत्पन्नो भवेत् यदि तदा 'जनेणं पलिओन डिइएस' जघन्येन परयोपमस्थिति कसौधर्मदेवring समुद्यते, तथा 'उकोसेण वि पलिओमट्टिएस उवज्जेज्जा' उत्कर्षेपिपरयोपस्थिति के उत्पद्येत 'एस चैव वचन्त्रया' एषैव प्रथमगमप्रदर्शितैव वक्तव्यता भणितव्या इहापि सर्व प्रथमगमोक्तमेवेत्यर्थः । 'नवरं ओगाहणा वह जीव इतने कालतक असंख्यातवर्षायुक्क पंचेन्द्रिय तिर्यग्गति का ओर देवगति का सेवन करता है और इतने ही कालतक वह उस दोनों गतियों में गमनागमन करता है । ऐसा यह तृतीय गम है ३| - 'सो चेव अपणा जहन्नकालडिओ जाओ' वही असंख्यातवर्षायुवक संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जब जघन्य काल की स्थितिको लेकर उत्पन्न होता है और सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होने के योग्य होता है तो वह उस स्थिति में 'जहनेणं पलिओवमहिएस उववज्जेज्जा' जघन्य से वहां के उन देवों में उत्पन्न होता है कि जिनकी स्थिति एक पोप की है और 'उक्कोसेण वि पलिओमट्ठिएसु उववज्जेज्जा' उत्कृष्ट से भी वह उन्हीं देवों में उत्पन्न होता है कि जिनकी स्थिति एक पल्योपम की है। इस प्रकार से आगे की ओर सब वक्तव्यता 'एस चैव वक्तव्वया' इस कथन के अनुसार प्रथम गम में जैसी कही गई है वैसी यहां पर कहनी चाहिये 'नवरं ओगाहणा जह 'एवइयं ० ' या रीते ते लव भेटला आण सुधी पयेन्द्रियतियन्य गतिनुं मने દેવ ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે. એ રીતે આ ત્રીજો ગમ કહ્યો છે. ૩ 'सो चे अपणा जहन्नकाल इओ जाओ' असंख्यात वर्षांनी आयुष्य વાળા સ'ની પૉંચેન્દ્રિય તિય ચ ચેાનીવાળા જીવ જ્યારે જઘન્યકાળની સ્થિતિને લઈને ઉત્પન્ન થાય છે. અને સૌધમ દેવલેાકમાં ઉત્પન્ન થવાને ચાગ્ય હાય छे. तो तेथे स्थितिमां 'जहन्नेणं पलि ओवमट्ठिइएसु उववज्जेज्जा' धन्यथी त्यांना તે દેવેમાં ઉત્પન્ન થાય છે કે જેઓની સ્થિતિ એક પત્યેાપમની હોય છે, એને 'उकोसेण विपलिओ मट्टिइएस उववज्जेज्जा" दृष्टथी पशु ते खेन हेवामां ઉત્પન્ન થાય છે, કે–જેએની સ્થિતિ એક પચેાપમની હાય છે. આ રીતે भागजनुं श्रीळु तभाभ उथन 'एस चैव वत्तब्वया' या सूत्रांशमां ह्या प्रमाणे पडेला શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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