SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 461
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे भागप्रमाणोऽनुबन्ध इति । 'सेसं तहेव' शेषम्-अवगाहनास्थित्यनुबन्धातिरिक्त परिमाणादिद्वारजातं तथैव-प्रथमादिगमवदेवेति । 'कालादेसेणं जहन्नेण दो अट्ठ. भागपलिभोवमाई' कालादेशेन जघन्येन द्वे अष्टभागपल्योपमे पल्योपमस्य चतुर्योश इत्यर्थः तथा-'उको सेण वि दो अट्ठभागपलिभोवमाई' उत्कर्षेणापि द्वे अष्टभागपल्योपमे 'एबइयं कालं जाव करेजा' एतावन्तं कालं यावत् कुर्यात् एतावत्कापर्यन्तं असंख्यातवर्षायुष्कसंक्षिपश्चेन्द्रियतिर्यग्गति ज्योतिष्कगतिं च सेवेत तथा एतावन्तमेव कालं यावत् असंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियगती ज्योतिष्कगतौ च गमनागमने कादिति 'जहन्नकालहिइयस्स एस चेव एकको गमो ४-५-६ । जघन्यकालस्थि. निकस्य एष एव एको गमः यतोऽत्रैव चतुर्थगमे एवं पञ्चवष्ठगमयोरन्तर्भावो आठवें भाग प्रमाण है 'सेसं तहेव' इस प्रकार अवगाहना, स्थिति और अनुबंध से अतिरिक्त बाकी के परिमाण आदि द्वारों का कथन प्रथमादि गम के जैसा ही है 'कालादेसेण जहन्नेणं दो अट्ठभागपलि ओरमाई' काल की अपेक्षा कायसंवेध जघन्य से पल्पोपम के दो आठवें भाग रूप है अर्थात् पल्योपम के चतुर्थांश रूप है। तथा 'उकोसेण वि दो अट्ठभागपलि भोवमाइ' तथा उत्कृष्ट से भी वह पल्योयम के दो आहवें भाग रूप है 'एवइयं कालं जाव करेज्जा' इस प्रकार वह जीव इतने काल तक असंख्यात वर्षायुरुक संज्ञो पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्गति का और ज्योतिष्क गति का सेवन करता है और इतने ही कोल तक वह उसमें गमनागमन करता है। 'जहनकालहिइयस्त एस चेव एको गमो ४-५-६' इस जघन्य काल की स्थिति वाले का यही एक गम भन। मामा नाम प्रमाणन। छे. 'सेस तहेव' मा शत भाडना, स्थिति, અને અનુબંધ શિવાય બાકીના પરિમાણ, વિગેરે દ્વારોનું કથન પહેલા विगेरे शमान थन प्रभाएं ४ छे. 'कालादेसेणं जहन्नेणं दो अदभागपलिओवमाई' सनी अपेक्षाथी छायवेध न्यथा ५८या५नामे ५ भ! मा ३५ छे. अर्थात् ५८ये।५मना यतुर्था । ३५ छे. तथा 'उकोसेण विदा अठभागपलिओवमाई' तथा थी ५५ ते ५८ये५भना में 24 मा भाग ३५. 'एव इयं कालं जाव करेज्जा' मा शत ते ७५ ट। ण संधी અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળી સંજ્ઞી પંચેનિદ્રય તિર્યંચ ગતિનું અને તિષ્ક ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં ગમના. १३ छ. 'जहन्नकाल द्विइयस्स एस चेव एको गमों' ! ४५-५ जनी स्थिति શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy