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________________ ४०२ मगवतीसुत्रे देवेर्हितो त्रि उपवज्जंति यावत् सर्वार्थसिद्धानुचरौपपातिककर पातीत वैमानिकदेवेयोsपि आगस्य समुत्पद्यन्ते अत्र यावत्पदेन वैजयन्तजयन्तापराजितानां सङ्ग्रहो भवतीति । 'विजयवैजयंत जयंत अपराजियदेवे णं भंते विजयवैजयन्तजयन्तापराजितदेवः खलु भदन्त ! 'जे भविए मणुस्सेसु उवज्जितए, से णं भंते! केवड्य कालटिइएस उववज्जेज्ज।' यो भन्यो मनुष्येषूत्यत्तुम् स खलु भदन्त ! कियत्कालस्पितिकेषु मनुष्येषु उपद्येवेति मइनः । उत्तरमतिदेशेनाह - ' एवं जहेव' इत्यादि । 'एवं जहेव गेवेज्जदेवार्ण' एवं यथैव ग्रैवेयक देवानां वक्तव्यता, तथैव सर्वमवगन्त व्यमिति । ग्रैवेयकदेवमकरणापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तद्दर्शयति- 'नवरे' इत्यादि । 1 मी आकरके मनुष्यगति में उत्पन्न होते हैं, यावत् 'सबसिद्ध अणुतरोवबाइयकप्पाईपवेमानियदेवेहिंतो वि उबवज्जंति' सर्वार्थसिद्धअनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देवों से भी आकरके उत्पन्न होते हैं। यहां पर भी यावत्पद से - वैजयन्त, जपन्त और अपराजित इनका संग्रह हुआ है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - 'विजयवे जयंत जयंत अपरा जियदेवे णं भंते! जे भविए मणुस्सेसु वज्जिए' हे भदन्त । विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव जो मनुष्यों में उत्पन्न होने के योग्य है । 'से णं भंते! केवइय कालट्ठिएस उववज्जेज्जा' वह हे भदन्त ! कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'एवं जहेब गवेज्जदेवाणं' हे गौतम! जैसा कथन ग्रैवेयकदेवों के सम्बन्ध में कहा जा चुका है वैसा ही कथन यहां पर भी करना चाहिये । पर ग्रैवेयक देवों की अपेक्षा जो यहां के भनुष्यगतियां उत्पन्न थाय छे यावत् 'सव्वट्टसिद्ध अणुतरोववाइयकप्पाईयवेमाणियदेवेद्दितो वि उवज्जति' सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपयाति वैमानिउवामाथी આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે, અહિયાં પણ યાવત્ પદથી વૈજયન્ત, જયન્ત અને અપરાજીત ગ્રહણ કરાયા છે. हवे गीतभस्वाभी अलुने मेवु पूछे छे - 'विजयवेजयंत जयंत अपराजियदेवे णं भंते ! जे भविए मणुरसेसु उववज्जित्तए' डे लगवन् विनय, વૈજયન્ત, જયન્ત અને અપરાજીત દેવે કે જેઓ મનુષ્ય ગતિમાં ઉત્પન્ન थवाने योग्य छे, 'से णं भंते! केवइयकालट्टिइएस उत्रत्रज्जेज्जा' ते हे लभवन् કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अलु उडे - ' एवं जहेव गेवेज्जदेवाणं' हे गौतम! ग्रैवेय हेवाना संभ ધમાં જે પ્રમાણેનુ' કથન કરવામાં આવ્યુ છે, એજ પ્રમાણેનુ' કથન અહિયાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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