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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० १०६ देवेभ्य. पं.तिर्यग्योनिकेषूत्पात: ३५३ फेवलमेतावदेव वैलक्षण्यं पूर्वापेक्षया यत् तार्शयति-'नवरं' इत्यादिना । 'नवरं योगाहणा जहाओगाहणसंठाणे' नवरम्-केवलं शरीरावगाहना अवगाहनासंस्थाने मज्ञापनाया एकविंशतितमे पदे देवानाम् इत्यमवगाहना कथिता । इयं भवधारणीय. शरीरमाश्रित्य मोक्ता, तथाहि-'भवणवाणजोइसोहम्मीसाणे सत्तहुंनि श्यणीओ। एक्केक्कहाणिसे से दुदुगे य दुगे चउक्के य ॥१॥ ___ भवनपतिवानमन्तरज्योतिष्कसौधर्मेशानेषु सप्त भवन्ति रत्नयः, एकैकरलि हानि:-शेषेषु द्विके द्विके च चतुष्के चेति। ___ भवनपति-वानव्यन्तर ज्योतिष्क-सौधर्मेशानदेवानां भवधारणीयाऽवगाहना समरनिप्रमाणा, शेषेषु-द्विके-सनत्कुमारमाहेन्द्ररूपे 'दुगे' द्विके-ब्रह्मलोक लान्तकरूपे, 'दुगे' द्विके-महाशुक पहस्राररूपे, तथा-'चउक्के' चतुष्क-मानतपाणता-ऽऽरणाऽच्युतरूपे एकैकरलि हान्याऽवगाहनाऽवगन्तव्या, तेन आनतादि कहना चाहिये। परन्तु पूर्व की अपेक्षा जो विलक्षगता है वह 'नवरं ओगाहणासंठाणे' अवगाहनो की अपेक्षा से है। अर्थात् अवगाहना संस्थानपद में जो अवगाहना कही गई है वही अवगाहना इनमें है यह अवगाहना संस्थानपद प्रज्ञापना सूत्र का २१ वां पद है। उसमें यह अवगाहना इस प्रकार से कही गई है-'भवणवा गजोइसोहम्मीसाणे सत्त हुँति रयणीओ। एकोक्क हाणि सेसे दुदुगे य दुगे चउको य॥१॥ -भवनपति, पानव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म तथा ईशान इन देवों के भवधारणीय अवगाहना सात रस्ति प्रमाण है । तथा सनत्कुमार और माहेन्द्र में ब्रह्मलोक और लान्तक में, महाशुक और सहस्त्रार में, एवं आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इनमें एक एक रनि कम करने से वहां वहां की अवगाहना होती है । इस प्रकार सनत्कुमार साना यन ४२त २ गुहा छ, 'नवरं ओगाहणा जहा ओगाहणासंठाणे' અવગાહના સંબંધમાં છે, અર્થાતુ-અગાઉના-સંસ્થાન પદમાં જે અવગાહના કહી છે એજ અવગાહના અહિયાં પણ કહી છે. આ અવગાહના સંસ્થાન પદ પ્રજ્ઞાપના સૂત્રનું ૨૧ એકવીસમું પદ છે. તેમાં આ અવગાહના આ प्रभार ४सी छे. 'भवणवाणजोइसोहम्मीमाणे सत्त हुंति रयणीओ एक्केबहाणि सेसे दुदुगे य दुगे चलके य' ॥१॥ सपनपति, पान०य-त२, न्याति, भने सोधम તથા ઈશાન આ દેવના ભવ–ધારણીય અવગાહના સાતત્નિ પ્રમાણની છે તથા સનકુમાર અને મહેન્દ્ર દેવલોકમાં, બ્રહ્મલેક અને લાન્તકમાં મહાશુક્ર અને સહસારમાં અને આનત, પ્રાણત, આરણ અને આયુત આમાં એક એક રવિન કમ કરવાથી ત્યાં ત્યાંની અવગાહના થાય છે. આ રીતે સ્વનિત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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