SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० सू०६ देवेभ्यः पतिर्यग्योनिकेधूत्पातः ३३७ पलियोवम अंतोमुहुत्तमम्महियं यावत्कालादेशेन जघन्येन अष्ट मागपल्योपममन्तर्मुहूर्ताम्यधिकम्, कायसंवेधः कालादेशेन जघन्येनान्तर्मुहूर्ताम्यधिकपल्योपमस्य अष्टम भागात्मक इत्यर्थः 'उकोसेणं च तारि पलिओवमाई चउहि पुनको. डोहि चउहि य वाससहस्सेहिं अमहियाई उत्कर्षेण चत्वारि पल्यापमानि चतसमिः पूर्वकोटिमि चतुर्मिश्च वर्षशतसहस्ररम्पधिकानि ‘एवइयं नाव करेग्जा' एतावन्तं कालं यावत् कुर्यात् एतावत्कालपर्यन्त ज्योतिष्कदेवगति पश्चेन्द्रियतिर्यः गतिं च सेवेत तथा एतावदेव कालपर्यन्तं ज्योतिकदेवगतौ पश्चेन्द्रियतिर्यग्गतौ च गमनागमने कुर्यादिति । 'एवं नवसु वि गमएमु' एवम्-प्रथमगमत्रदेव नवस्वपिगमकेषु परिमाणादारभ्य कायसंवेधान्तं द्वारजातं वक्तव्यम् । 'नवरं ठिई संवेहं च जाणेज्जा' नवरम्-केवलं स्थिति संवेधं च भिन्नभिन्नरूपेण यथा योग्यं जानी यादिति ९ । 'जइ वेमाणियदेवेहितो उपवनंति' हे भदन्त ! यदि पश्चेन्द्रिगति लिओवमं अंतोमुत्तमम्भहियं' यावत् काल की अपेक्षा से कायसंवैध जघन्य से अन्तर्मुहूर्त अधिक पल्पोपम का आठमा भाग रूप है और 'उकोसेणं' उत्कृष्ट से 'चत्तारि पलिभोवमाई चाहिं पुन्धकोडीहिं.' यह चार पूर्वकोटि (चार लाख वर्ष) अधिक चार पल्पोपम का है 'एवइयं जाव करेज्जा' इस प्रकार इतने काल तक वह जीव ज्योतिष्क देवति का और पश्चेन्द्रिय तिर्यग्गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उस ज्योतिष्क देवगति में और पञ्चेन्द्रियतियग्गति में गमना गमन करता है । 'एवं नवस्तु वि गमएसु' इस प्रकार नौ गमे में प्रथम गम के जैसा ही परिमाण से लेकर कायसंवेध तक जानना चाहिये। मवरं ठिई संवेहं च जाणेज्जा' केवल स्थिति और कायसंवेध ही सर्वत्र गमों में भिन्न २ रूप से है और कोई द्वार में भिन्नता नहीं है। ओवमं अतोमुत्तमब्भहियं' यावत् नी अपेक्षाथी यसवय धन्यथा मतभुत मधिर ५८योभना मामा माग ३५ . अने, 'उक्कोसेण' . थी 'चत्तारि पलिओवमाई चाहिं पुबकोडीहिं' ते या पूर अधिक थार पक्ष्या५मना छे. 'एवइयं जाव करेज्जा' से रात 11 m सुधी त જીવ જાતિકદેવ ગતિ અને સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયતિય ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે. “g नवस वि गमएस' मा शत नवे गभामा ५७। आममा प्रभार परिमायया ने यस वध सुधीनु थन सभा 'नवरं ठिई संवेह च जाणेज्जा' हेवण स्थिति भने यस वध मा गोमा ह । - રના છે. બીજા કેઈ દ્વારમાં જુદા પણ નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy