SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०६ भगवतीलो हे गौतम ! 'पज्जत्तसंखेन्जत्रासाउयसन्निमणुस्सेहितो वि उजवनंति' पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्कसं शिमनुष्येभ्योऽपि आगत्योत्पधन्ते तथा-'अपज्जत्तसंखेज्ज वासाउयसन्निमणुस्से हितो वि उववज्जति' अपर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंशिमनुष्येभ्योऽपि आगत्योत्पद्यन्ते इत्युत्तरम् । 'सन्नि मणुस्से भंते' संज्ञिमनुष्या खलु भदन्त ! 'जे भविए पंचिंदियतिरिकखजोणिएमु उपज्जित्तए' यो भव्यः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उत्पत्तुम् ‘से णं भंते !' स खलु भदन्त ! 'केवइयकालदिइएमु उवधज्जेज्जा' कियकालस्थितिकेषु उत्पतेति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्टिइएसु' जघन्येनान्तर्मुहूर्तहै ? गौतम के इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'पज्जत्तसंखज्जवासाउयसन्निमणुस्से हितो वि उववज्जति, अवज्जत्त संखेज्जवासाउय सन्नि मणुस्से हितो वि उववज्जति' वे पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले मनुष्यो से आकरके भी उत्पन्न होते हैं और अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले मनुष्यों से भी आकरके उत्पन्न होते हैं। ___ अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं--'सन्निमणुस्ले ण भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोगिएलु उपजिजत्तए' हे भदन्त ! संजी मनुष्य जो पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होने के योग्य है 'से गं. भंते ! केवइयकालहिइएप्सु उववज्जेना' वह कितने कालकी स्थितिवाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम । वह 'जहन्नेणं अंगोमुत्तहिाएसु' जघन्य से મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? ગૌતમસ્વામીના આ પ્રશ્નના ઉત્તર २मा प्रसुतमान छ 3-गोयमा !' गौतम ! 'पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहितो वि उववज्जति, अपज्जत्तसंखेजवासाउयसन्निमणुस्सेहितो वि उववज्जति' तमा पनि सन्यात पनी मायुष्यवाणा मनुष्याभाथी भावीन. પણ ઉત્પન્ન થાય છે, અને અપર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા મનુ બેમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે. इशथी गौतमसपाभी प्रभुने मेj ५छे छे ...--'सन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पचि दियतिरिक्ख जोणिएस उववजित्तए' 8 लापन सज्ञी मनुष्य २ सी पयन्द्रियतिय य योनिमा पन्न थाने योग्य छ, 'से णं भंते ! केवड्यकालदिइएस उववज्जेजा' त Jean अनी स्थिति सी पन्द्रय તિર્યંચ નિમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy