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________________ भगवतीसूत्रे इन्यादि, 'नवरं एगा तेउलेस्सा पन्नत्ता' नवरम्-केवलम् एका तेजोलेश्या प्रज्ञप्ता अमरकुमारप्रकरणे चतस्रो लेश्याः प्रतिपादिताः, ज्योतिष्कदेवप्रकरणे तु एकैव तेजोलेश्येति भवत्येवोभयविलक्षण्यमिति । 'तिमि नाणा तिन्नि अन्नाणा नियम आणि ज्ञानानि मत्यादीनि तथा त्रीणि अज्ञानानि मत्यज्ञानादीनि नियमतः, ज्योतिष्कदेवे असजिनो जीवस्य उत्पत्ति न भवति संज्ञिन श्चोत्पद्यन्ते तेषामुत्पत्तिसमये एव सम्यग्दृष्टेः सत्त्वात् त्रीणि ज्ञानानि मत्यादीनि संभवन्ति तदितरेषां तु श्रीणि अज्ञानानि मत्यज्ञानादीनि भवन्ति इति । 'ठिई जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं' स्थितिर्जघन्येन अष्टभागपल्योपमम् पल्योपमस्य अष्टमो भागः अष्ट भागः, स में भी-सक परिमाण उत्पान आदि कहना चाहिये, परन्तु पूर्वप्रकरण की अपेक्षा जो इस प्रकरण में भिन्नता है वह 'नवरं एगा तेउलेस्सा पण्णता' इस प्रकार से है, यहां एक तेजोलेश्या ही कही गई है, तव कि असुरुकुमार के प्रकरण में लेश्याद्वार में चार लेश्याएँ कही गई है। यहां 'तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा नियम' मत्यादिक तीन ज्ञान और मत्यज्ञान आदि तीन अज्ञान नियम से होते हैं, क्यों कि ज्योतिष्क देव में असंज्ञी जीव की उत्पत्ति नहीं होती है, संज्ञी जीव की ही उत्पत्ति होती है, इसलिये उनमें उत्पत्ति के समय में ही सम्यग्दृष्टि का सदाब हो जाता है, अतः इनके तीन ज्ञान नियम से कहे गये हैं और इनसे भिन्न के मत्यज्ञान आदि तीन अज्ञान नियमसे कहे गये हैं। 'ठिई जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं स्थिति जघन्य से यहां पल्यो पम के आठवें भाग प्रमाण है-अर्थात् एक पल्प के आठवें भाग रूप भारीमा ४२६५ ४२di मा प्रभा २ हा या छ. a 'नवर एगा सेउलेक्सा पण्णता' ५। प्रभारीनी छ. . येति ४ देवाने से तरबेश्या જ કહી છે. અને અસુરકુમાર પ્રકરણમાં લેસ્થા દ્વારમાં ચાર લેખાઓ કહી છે. ज्ञानदारमा मडिया 'तिन्नि णाणा तिम्नि अण्णाणा नियम' भतिज्ञान, श्रुतज्ञान, અને અવધિજ્ઞાન એ ત્રણ જ્ઞાન તથા મતિ અજ્ઞાન; થતઅજ્ઞાન અને વિર્ભાગજ્ઞાન એ ત્રણ અજ્ઞાન નિયમથી હોય છે. કેમકે જ્યોતિષ્કદેમાં જીવોની ઉત્પત્તિ થતી નથી. કેવળ સંજ્ઞી જીવોની જ ઉત્પત્તિ થાય છે. તેથી તેઓમાં ઉત્પત્તિના સમયે જ સમ્યગૂ દષ્ટિનો સદ્ભાવ હોય છે. જેથી તેઓને ત્રણ સાન કહ્યા છે. અને તેથી જુદાને મતિજ્ઞાન વિગેરે ત્રણ અજ્ઞાને કહ્યા છે. 'ठिई जहण्णेणं अट्ठभागपलि ओवमं' स्थिति धन्यथी महिया ५८।५मना આઠમા ભાગ પ્રમાણની કહી છે. અર્થાત-એક પશ્યના આઠમાં ભાગ રૂપ છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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