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________________ ११८ भगवतीसूत्रे काय के वृत्पद्येत इति प्रश्नः । उत्तरमाह - ' एवं जहा ' इत्यादि, 'एवं जहा असन्निपंचिदियतिरिकखजोणियस्स जहन्नाकालद्वियस्सस' एवं यथा असंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य जघन्यकाळस्थितिकस्य, 'तिभि गमगा भणिया तहा एयस्स वि ओहिया तिमि गमगा भाणियव्वा' त्रयो गमका भणिता स्तथा एतस्या संज्ञिमनुष्यस्यापि यो गमका औधिका भणितव्याः 'तहेव निरवसेसं' तथैव निरवशेषम् यथैवासंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य जघन्यकालस्थितिकस्याद्या अधिकायो गमाः कथिता स्तथेत्र निरवशेषम् असंज्ञिमनुष्यस्यापि आद्या औधिकास्त्रयो गमा वक्तव्याः अजघन्योत्कृष्टस्थितिकत्वात् तथाहि - यो हि असंज्ञिमनुष्यः पृथिवीकायिकेषूत्पत्तियोग्यः स कियत्काल स्थितिकेवृस्पद्यते इति प्रश्नस्य जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तस्थितिकेषु उत्कर्षेण द्वाविंशतिवर्षसहस्र स्थिति के पूत्यच ते इत्युत्तरम् एवम् असंज्ञिमनुष्याः जहा असन्निपंचिदियतिरिक्खजोणियस्स' हे गौतम! जिस प्रकार से जघन्य काल की स्थिति वाले असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च के तीन गम कहे गये हैं उसी प्रकार से इस असंज्ञो मनुष्य के भी तीन आदिके औधिक गम कहना चाहिये क्योंकि यह अजघन्य उत्कृष्ट स्थिति चाला होता है, इसका स्पष्टार्थ इस प्रकार से है- जो असंज्ञी मनुष्य पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होने योग्य है है भदन्त ! ऐसा वह मनुष्ध कितने काल की स्थितिवाले पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- हे गौतम! ऐसा वह मनुष्य जघन्य से अन्तमुह की स्थितियाले पृथिवी कायिकों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट से वह २२ हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथिवीकाधिकों में उत्पन्न होता है, इसी प्रकार से वे असंज्ञी मनुष्य एकसमय में वहां कितने उत्पन्न भंते ! केबइयकालठिइ०' सेवा मनुष्य डेंटला अजनी स्थितिवाजा पृथ्वीश्रयिકામાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ प्रश्नना उत्तरमा प्रभु छे - एवं जहा असन्निप चिदियतिरिक्खजोणियस्स ० ' हे गौतम! ने रीते भवन्य अजनी સ્થિતિવાળા અસ'ની પચેન્દ્રિય તિય ચના ત્રણ ગમેા કહ્યા છે, તેજ રીતે આ અસજ્ઞી મનુષ્યના સંબંધમાં પણુ આદિના ત્રણ ઔઘિક ગમા કહેવા જોઇએ, કેમકે-આ અજધન્ય ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા હાય છે. આ કથનનું તાપ આ પ્રમાણેનું છે. જે અસ'ની મનુષ્ય પૃથ્વીકાયકામાં ઉત્પન્ન થવાને ચેાગ્ય છે, હે ભગવન્ એવા તે મનુષ્ય કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે-હે ગૌતમ! એવા તે મનુષ્ય જઘન્યથી અંતર્મુહૂતની સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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