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________________ भगवतीस्त्रे " गन्धवतोरविवक्षणात् द्रव्यमात्रस्यैव विवक्षणात् । 'अर से' अरसः - तिक्तादिरसरहितः रसानामविवक्षणात् 'अफासे' अस्पर्शः - कर्कशमृदुकगुरुकलघुकशीतोष्णस्निग्धरूक्षस्पर्शरहितः स्पर्शानामपि अविवक्षणात् 'भावपरमाणू णं भंते !" भावपरमाणुः खलु भदन्त ! 'कइविहे पन्नत्ते' कतिविधः प्रज्ञप्तः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'चव्विहे पनते' भावपरमाणुश्चविधः चतुःप्रकारकः प्रज्ञप्तः कथितः । चातुर्विध्यमेव दर्शयति- 'तं जहा ' तद्यथा'वन्न मंते' वर्णवान् कृष्णनीललोहितद्दारिद्रशुक्लम भेदभिन्नपञ्चमकारकवर्णवान् दुरभिगन्ध इन दोनों प्रकार की भी गंध से रहित कहा गया है यद्यपि वहां परमाणु में गन्धगुण विद्यमान है फिर भी उसकी यहां विवक्षा नहीं हुई है । केवल काल (समय) द्रव्यमात्र की ही विवक्षा हुई है 'अरसे' वह कालपरमाणु अरस-तिक्तादि रसों से रहित होता है, यद्यपि उसमें वे विद्यमान रहते हैं फिर भी यहां उनकी विवक्षा नहीं हुई है - केवल समयमात्र की ही हुई है। 'अफासे' कर्कश, मृदुक, गुरुक, लघुक, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष इनके भेद से जो स्पर्श आठ प्रकार का कहा गया है वह भी उसमें नहीं रहता है इस कारण उसे अस्पर्श रूप से कहा है अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं'भावपरमाणु णं भंते ! कहविहे पनन्ते' हे भदन्त ! जो भावपरमाणू है वह कितने प्रकार का कहा गया है उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! विपणन्ते' हे गौतम ! भाव परमाणु चार प्रकार का कहा गया है - 'तं जहा' जैसे - 'वनमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते' वर्णवाला, ९५४ प्रभा - 'वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते' वशुवाजा गंधवाजा, रसवाजा સુગધ દુરભિગ ધ–દુગન્ધ એ બન્ને પ્રકારના ગધા વિનાનું કહેવામાં આવેલ છે. જો કે ત્યાં પરમાણુમાં ગંધ ગુણુ હોય જ છે. તે પણ અહિયાં તેની विवक्षा थर्ध नथी. डेवल द्रव्य भात्रनी ४ विवक्षा था छे. 'अरसे' ते स પરમાણુ અરસ-તિખા વિગેરે રસેા વિનાનું હોય છે. જો કે તે રસે તેમાં વિદ્યમાન હાય છે પણ અહિયાં તેની વિવક્ષા થઇ નથી. કેવળ દ્રવ્ય માત્રની ४ विषक्षा श्वामां भावी छे. 'अफासे' अश भृहु, गु३ लघु शीत, उ, સ્નિગ્ધ અને રૂક્ષ એ ભેદથી સ્પર્શ આઠ પ્રકારના કહેલ છે. તે પશુ તેમાં रडेते। नथी, तेथी तेने 'अस्पर्श' स्पर्श' विनाना उडेल छे, હવે ગૌતમ સ્વામી ભાવપરમ ના સંબધમાં પ્રભુને પૂછે છે કે 'भावपरमाणू णं भंते! कइविहे पण्णत्ते' हे भगवन् भावपरमाणु ईंटसा अारना हे ? म प्रश्नमा उत्तरमा अलु पण्णत्ते' हे गौतम लाव परमाणु यार प्रहार - 'गोयमा ! चउव्विद्दे छे. 'त' जहा' ते શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩ डे हे
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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